Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 782
________________ ७४४ ३७५. कच्छप: ३७६. कटं करिष्यन् व्रजति ३७७. कटं करिष्यमाणो व्रजति ४२२ ४०९ कामदुघा ३७८. कथङ्कारं भुङ्क्ते ३७९. कथा ३८०. कन्यादर्शं वरयति ३८१. कपाटघ्नः ३८२. कपोतपाकः ३८३. कम्पनः ३८४. कम्प्रः ३८५. कम्र: ३८६. करः ३८७. करणीयः कटो भवता ३८८. करणीयम् १४६, ३८९. करन्धमः ३९०. करिष्यन् व्रजति ३९९. करिष्यमाण: ३९२. करिष्यमाणो व्रजति ३९३. करीषङ्कषा वात्या ३९४. कर्णेजपः ३९५. कर्तव्यः कटो भवता ३९६. कर्तव्यम् १४६, ३९७. कर्ता ३९८. कर्तृकर: ३९९. कर्मकरः ४००. कर्मकरी ४०१. कर्मकृत् ४०२. कर्शित्वा ४०३. कल्याणाचारा कातन्त्रव्याकरणम् २३६ | ४०७. काण्डकार: ४२२ |४०८. काण्डलावो व्रजति ४०४. कवचहर: ४०५. कष्टोऽग्निः ४०६. कस्वर: ५३८ | ४१०. कामयते भोक्तुम् ४९१४११. कामुकः ५४० ४१२. काय: २८१ ४१३. कारकरः ५९३ ४१४. कार: ३७७ ४१५. कारक: ३९६ ४१६. कारणा ३९६ ४१७. कारा ५०१ ४१८. कारिकाम् ५१६ |४१९. कारिम् १६६ ४२० कारुः २६१ ४२१. कार्यः कटो ४२२ |४२२. कार्यम् ३५४ ४२३. कालिम्मन्या ४२२ ४२४. कालो भोक्तुम् २६८ |४२५. काष्ठभित् २४६ |४२६. किङ्करः ५१६ |४२७. की: १६६ |४२८. कीदृक् ५७४ | ४२९. कीदृश: २५४ ४३०. कीदृक्षः २५५ ४३१. कीर्ण: २५५ |४३२. कीर्णवान् ३२७ ४३३. कीर्त्तिः ३२ |४३४. कीर्त्वा २३३ | ४३५. कीलालपाः २४२ ४३६. कुज: ६३६ ४३७. कुट्टाक: ३९४ |४३८. कुट्टाकी २३० ४१९ २९१ ५१२ ३८२ ४५४ २५४ ७ ७,५७३ ४९३ ४९० ४९६ ४९६ ४१२, ५८१ ५१६ १८९, १९३ ४४ भवता १५५ ३०२ २५४ २९७ ६०२ ६०२ ६०२ ६१६ ६१६ ४९३ ६१६ ६९,२९५ ५९५ ३८३ ३८३

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