Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 777
________________ ५५. अनूषितो गुरुर्भवता ५६. अन्तकरः ५७. अन्तगः ५८. अन्तर्घणः ५९. अन्धङ्करणः शोक: ६०. अन्धम्भविष्णुः ६१. अन्धम्भावुकः ६२. अन्यथाकारं भुङ्क्ते ६३. अन्यादृक् ६४. अन्यादृशः ६५. अन्यादृशी ६६. अन्यादृक्षः ६७. अन्विष्टिः ६८. अन्वेषणा ६९. अपत्रपिष्णुः ७०. अपत्राप्यम् ७१. अपमाय ७२. अपामार्गः ७३. अपमित्य ७४. अपलाषुकः ७५. अपिगृह्यम् ७६. अपिग्राह्यम् ७७. अप्राप्य नदीं पर्वतः ७८. अब्जा: ७९. अब्जा: लक्ष्मी: ८०. अभयङ्करः ८१. अभिज ८२. अभिजित् ८३. अभिलाव: ८४. अभिलाषणः ८५. अभिशीन: ८६. अभिशीनवान् परिशिष्टम् - ८ ५७८ ८७. अभिश्यानः २५४ २७४ ४७१ २८४ २८७ २८७ ५३८ ९४. अभ्यान्तः ३०५ ९५. अभ्रंलिहो वायुः ३०५ ९६. अभ्रङ्कषो गिरिः ३०५ ९७. अमावस्या ३०५ ९८. अमावास्या ४९३ ९९. अमुद्र्यङ् ४९३ १००. अमूदृक् ३६३ | १०१. अमूदृशः १९५ १०२. अमूदृक्षः ५२६ १०३. अयोधनः ५०४ | १०४. अरिजित् ८८. अभिश्यानवान् ८९. अभिहवः ९०. अभ्यमितः ९१. अभ्यमी ९२. अभ्यर्णा सेना ९३. अभ्याघाती ५२६ | १०५. अरित्रम् ३८२ | १०६. अरिन्दमः १८६ | १०७. अरुन्तुदः १८६ १०८. अरुष्करः ५३० १०९. अर्चितः १२२ | ११०. अर्च्यः २९२ | १११. अर्जयन् वसति २६८ | ११२. अर्जुनगृह्या सेना ३३५ | ११३. अर्घम् ३०२ ११४. अर्तित्वा ४४३ | ११५. अर्धप्रभाक् ३८१ | ११६. अर्धभाक् ७३९ ९५. ९५ ४६८ ६३९ ३८५ ६३९ ३६९ ६३९ २६६ २६८ २०३ २०३ ६०४ ६०२ ६०२ ६०२ ४७२ ३०२ ४०६ २७१ ४९, २६२ २५४ ४१० ५९६ ३४८ १८७ ५९३ ३२ २८७ ६.९ १७५ ३५९ ९५ | ११७. अर्यः ९५ ११८. अर्हन् भवान् विद्याम्

Loading...

Page Navigation
1 ... 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824