Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 768
________________ ४२३. ४०४ .0. c0 ० ० ० ७३० कातन्त्रव्याकरणम् ४११. वदः ३०-४४६. विषयः ४१२. वदिता ३६१/४४७. विष्वव्यङ् ४१३. वराह: २७५/४४८. विसार: ४१४. वर्तमान: ३४५, ४०८/४४९. विहङ्गः ४१५. वर्त्म ४१०/४५०. विहङ्गम: ४१६. वसुन्धरा पृथ्वी २७१४५१. वीरभूः ४१७ वह: ८०२४५२. वृतम् ४१८ वहभ्रट ०९७/४७३. वेदः ४१९, वह्यम् १७४/४५४. वेश: ४२०. वाक्यरचना ५९७४.. व्यङ्ग्यम् ४२१. वाचंयमी व्रतः ५८/४५६. व्यजः ४२२. वातमजा मृगाः २६६/४५७. व्याघ्रः ४२३. वातापि: २५७४५८. व्युपध: ४२४. वायुः ४१०,५८१/४५९. व्ये ४२५. वाचों हंस: २७५/४६०. व्रजः ४२६. वास्तव्य: १६५/४६१. शक्रहः ४२७ विकाषी २७०४६२. शङ्करः ४२८ विक्रयः ३३०/४६३. शत्रुन्तपः ४२९, विघन: ४७१/४६४. शब्दसज्ञा ४३०. विघ्न: ४७४/४६५. शमी ४३१. वित्तम् ६५१/४६६. शय्या ४३२. विदुरः ३८८,४४२ ४६७. शर्धञ्जहा माषा: ४३३. विदुषिम्मन्या ३१७/४६८. शस्यात् ४३४. विद्वन्मन्य: ३१७/४६९. शाताशितम् ४३५, विद्वन्मानिनी ३१७/४७०. शिल्पी ४३६. विधानम् ५१२/४७१. शील: ४३७ विद्वन्मानी ३१६/४७२. शुनिन्धयः ४३८ विन्दः २१३ ४७३. शुनीन्धयी ४३९, विभाव: ४३८/४७४. शोकापनुदः ४४०. विभुजः २३९/४७५. श्येनचित् ४४१. विमोहनम् ६२४/४७६. श्रवः ४४२. विवक्षितकर्तृकर्म ४१/४७७. श्राद्धकरः ४४३. विवक्षितकर्तृकर्मैकवस्तु ४१/४७८. श्वेतवा इन्द्रः ४४४. विवेकी ३७०४७९. संग्राम: ४४. विश्वम्भग अवनिः २७१/४८०. संघः ० ० ० ० ० २२८ ३६७ ४८२ WWWWWWWWW UKUUU.0 w ० ० ० For Mr Mww mr ० 3 ० २३७ ३२८ ५०१ २५१ २९२ ६३७ ४७३

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