Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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६८
८१ ४५०
२३२
१३
ه
७२८ २७१. पतग: २७२. पतङ्गः २७३. पतिंवरा कन्या २७४. पदकार: २७५. पदकृत् २७६. पदार्थविशेष: २७७. पयोनिधिः २७८. परन्तपः शक्रः २७९. परिखा २८०. परिघः २८१. परिचाय्योऽग्निः २८२. परिदेवकः २८३. परिदेवी २८४. परिभवः २८५. परिमाणम् २८६. पर्णध्वत् २८७. पलिघः २८८. पवित्रम् २८९. पवित्रिताधरः २९०. पवित्रोऽग्निः २९१. पवित्रोऽयमृषि: २९२. पाणिघः २९३. पादः २९४. पादहारक: २९५. पार्श्वशयः २९६. पुमनुजः २९७. पुरः २९८. पुरःसरः २९९. पुर:सरी ३००. पुरगः ३०१. पुरन्दरः शक्रः ३०२. पुरोडाः ३०३. पुष्पाहार: ३०४. पुष्य: ३०५. पूर्वङ्गमाः पन्थान:
कातन्त्रव्याकरणम् २७४/३०६. पूर्वसरः २७५/३०७. पूर्वसरी २७१/३०८. पूर्वसार: ३२७/३०९. पृक्तः ३२७/३१०. प्रक्षीणम् ४११/३११. प्रग्राहः २३४/३१२. प्रच्छदः २६६/३१३. प्रच्छादः २७५/३१४. प्रतीक्षः ४७२ |३१५. प्रत्ययलुकः
०१/३१६. प्रथमैकाधिकरणम् ३७३ |३१७. प्रपा ३७३|
|३१८. प्रभाव: ४५२/३१९. प्रयाम: ४३३/३२०. प्रयामी २९६/३२१. प्रवचनीयः ४७२/३२२. प्रशाम्यति ४०६/३२३. प्रशाम्यम् २९३/३२४. प्रस्तर: ४०७/३२५. प्रस्तरपतिः ४०७/३२६. प्रस्न:
२८१/३२७. प्राकार: ४२३,४२४/३२८. प्रागवस्था
२०४/३२९. प्राण: २४७/३३०. प्राश: ३३४/३३१. प्रासादः २७४/३३२. प्रीण: २४९/३३३. प्लवङ्गः २४९/३३४. फलवत्कर्तृप्रतिपत्त्यर्थम् २७४/३३५. फलेग्रहिः
५८/३३६. फलेपाकः २९२,२९३/३३७. ब्रह्मज्य:
२४२/३३८. ब्रह्मदुघा १९१ ३३९. ब्रह्मवादी २७२/३४०. ब्रह्महत्या
३४४,३४५
४७४ ४३८ ३७२ ३७२ ४९८ ६०७ ६०७ ४४१
४४१
४७४
४२७ २२७ ३५२ ४२७
४२७ ४९,५०
२७५
३५८ २५६ ५९३ २३४ २९०
३०५
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