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कातन्त्रव्याकरणम
[विशेष वचन] १. यद्यपि 'क्रूयी' शब्देअकर्मकस्तथापि इनन्तत्वात् मकर्मत्वम् (क० त० ।। [रूपसिद्धि]
१. चेलनोपं वृष्टो देवः। चेल- क्रूया- इन्-णम्-सि। 'चेल ' के उपपद में रहने पर क्रोपि' धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णम्' प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य।
२-३. वस्त्रनोपं वृष्टो देवः। वस्त्र-क्नूयी- इन्- णम्-सि। वसनक्नोपं वृष्टो देवः। वसन+क्नूयी+इन्+णम्-सि। 'वस्त्र' तथा 'वसन' शब्द के उपपद में रहने पर 'कोपि' धात् से ‘णम्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत्।।१३००।
१३०१. निमूलसमूलयोः कषः [४।६।१६] [सूत्रार्थ
'निमूल-समूल' शब्दों के उपपद में रहने पर 'कष हिंसार्थ:' धातु से ‘णम्' प्रत्यय होता है।।१३०१।
[दु० वृ०]
निमूलसमूलयोः कर्मणोरुपपदयोः कषतेर्णम् भवति। निमूलकाधं कषति. समूलकाषं कषति। निमूलं समूलं कषतीत्यर्थः।।१३०१ ।
[क० त०]
निमूल०। निश्चितं मूलं निमूलम्। मूलेन सह वर्तमानं समूलम्। तयोः कषणं हिंसा, कषीत्यनुप्रयोगे वर्तमानादयः प्रतिपाद्यन्ते, नात्र द्वयोर्धात्वोरर्थः प्रतिपाद्य:. किन्त्वेकस्यैव।।१३०१।
[समीक्षा]
'निमूलकाषम्, समूलकाषम्' शब्दों के सिद्धयर्थ कातन्त्रकार ने ‘णम्' प्रत्यय तथा पाणिनि ने ‘णमुल्' प्रत्यय किया है ।पाणिनि का सूत्र है- “निमूलसमूलयोः कष:" (अ० ३।४।३४) । पाणिनीय अनुबन्धयोजना को छोड़कर अन्य प्रकार की तो उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि]
१. निमूलकाषं कषति। निमूल-कष्- णम् -सि। निश्चितं मूलं निमूलम्, निमूलं कषति । 'निमूल' शब्द के उपपद में रहने पर 'कष हिंसार्थ:' (१।२२४) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णम्' प्रत्यय, इज्वद्भाव, “अम्योपधाया दीर्घा०' (३।६।५) इत्यादि से उपधादीर्घ, लिङ्गसज्ञा, सि-प्रत्यय, अव्ययसंज्ञा तथा 'सि' प्रत्यय का लुक्।