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कातन्त्रव्याकरणम्
[रूपसिद्धि]
१. दाशः। दाश्-अच्-सि। दाशते यस्मै। 'दारी दाने' (१।८८७) धातु से निपातनविधि द्वारा 'अच्' प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य।
२. गोघ्नः। गो-हन्-टक्-सि। गां हन्ति यस्मै आगतायातिथये। 'गो' शब्द के उपपद में रहने पर 'हन् हिंसागत्योः' (२।४) धातु से निपातन द्वारा 'टक्' प्रत्यय, उपधा अकार का लोप, हकार को घकार तथा विभक्तिकार्य।।१३३५।
१३३६. भीमादयोऽपादाने [४।६।५१] [सूत्रार्थ 'भीम' आदि शब्द अपादान अर्थ में निपातन द्वारा सिद्ध होते हैं।। १३३६। [दु०वृ०]
एते निपात्यन्तेऽपादाने। बिभेत्यस्मादिति भीमः, भीष्मः। चरुः, प्रस्कन्दः, प्रपतन: समुद्रः, नुवः। एते औणादिका यथाकथंचिद् व्युत्पाद्याः।।१३३६।
[दु० टी०]
भीम०। बिभेत्यादिभ्यो मगादयः प्रत्ययाः प्रयोगानुसारेण योज्याः। एते इत्यादि। यदि तर्खेते उणादयः प्रत्ययाः क्रियाकारकसम्बन्धाभावाद् अपादाने एतेषां वृत्तिर्नास्तीति? सत्यम्, रूढिशब्देष्वपि कश्चित् क्रियाकारकसम्बन्धो दृश्यते। यथा तेलपायिकादिशब्दानामपीति भावः।।१३३६।
[समीक्षा
'भीम-भीष्म' आदि शब्दों की सिद्धि अपादान अर्थ में निपातन द्वारा दोनों ही व्याकरणों में की गई है। पाणिनि का सूत्र है- "भीमादयोऽपादाने'' (अ० ३।४।७४)। अत: उभयत्र पूर्णतया समानता ही है।
[विशेष वचन] १. ओणादिका यथाकथञ्चिद् व्युत्पाद्या: (दु० वृ०)। २. रूढिशब्देष्वपि कश्चित् क्रियाकारकसम्बन्धो दृश्यते (दु० टी०)। [रूपसिद्धि]
१-२. भीमः, भीष्मः। भी+मक्+सि, भी+स्+मक्-सि। बिभेत्यस्मात्। 'त्रि भी भये' (२।६८) धातु से निपातन द्वारा मक् प्रत्यय, सकारागम तथा विभक्तिकार्य।
३-७. चरुः। चर्+उ+सि। चरत्यस्मात्। प्रस्कन्दनः। प्र-स्कन्द-यु- अन+सि। प्रस्कन्दत्यस्मात्। प्रपतनः। प्र+पत्+यु-अन+ सि। प्रपतत्यस्मात्। समुद्रः। सुवः। सु+क+ सि। स्रवत्यस्मात्। चर् आदि धातुओं से 'उ' आदि प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य।।१३३६।