Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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६७७
२।९ ६२५ २।३९
२।४ ६।३० ६.४५ १।१४
२१४१
३१३१
२।५६
४।८
५।३७ २०४९
२।१२
परिशिष्टम्-२ १९०. धेन्वादयः १९१. ध्वनेः क्षो दीर्घश्च १९२. नञि च नन्देर्दीर्घश्च १९३. नञि जहाते: १९४. नञि पतेर्यः १९५. नमिसमिभ्यामञ् १९६. नावञ्चेः १९७. नियो डानुबन्धश्च १९८. नीदलिभ्यां मिः १९९. नीपादयः २००. नीविः २०१. नौतेरत्यनौ २०२. नौ सदेः २०३. न्युदोः शीङ्गाभ्याम् २०४. पञ्चेरनिः २०५. पञ्चेराल: २०६. पटिकमिमशिकशिभ्य: कल: २०७. पटिलटिभ्यामलिञ् २०८. पटेरोल: २०९. पट्यसिवसिहनि० २१०. पणिकितिभ्यामवक् २११. पतिचण्डिभ्यामाल २१२. पतिवपिशकि० २१३. पतेर्नीः २१४. परमेष्ठी २१५. परौ व्रजेश्च २१६. पर्जन्यपुण्ये २१७. पलेराश: २१८. पाते: पः २१९. पातेरक: २२०. पातेर्डतिः २२१. पिशुनफाल्गुनौ
५।४३ ५।१३
६१ ६।२२ ५५४
१६
५।२६ १।४३ ६४ ५।६१ ४।५० २।२४
३४
५।२१
२१५५ ६.३४ ३१५३ २०६१

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