Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 728
________________ साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य माम्य साम्य साम्ब साम्य साम्य कातन्त्रव्याकरणम् १०३. का० अजयँ सङ्गने च ४।२।१९ निपातनविधि पा० अजयं सङ्गतम् ३।१।१०५ निपातनविधि १०४. का० नाम्नि वद: क्यप् च ४।२।२० क्यप् -य प्रत्यय पा० वदः सुपि क्यप् च ३।१।१०६ क्यप् - यत् प्रत्यय १०५. का० भावे भुवः ४।२।२१ क्यप् प्रत्यय पा० भुवो भावे ३।१।१०७ क्यप् प्रत्यय १०६. का० हनस्त च ४।२।२२ क्यप् -तकारादेश पा० हनस्त च ३।१।१०८ क्यप्-तकारादेश १०७. का० वृद्धजुषीणशासुस्तुगुहां क्यप् ४।२।२३ । क्यप् प्रत्यय पा० एतिस्तुशास्वृदृजुषः क्यप् ३।१।१०९ क्यप् प्रत्यय १०८. का० ऋदुपधाच्चाक्लपिते: ४।२।२४ क्यप् प्रत्यय पा० ऋदुपधाच्चाक्लपिघृतेः ३।१।११० क्यप् प्रत्यय १०९. का० भृञोऽसंज्ञायाम् ४।२।२५ क्यप् प्रत्यय पा० भृञोऽसंज्ञायाम् ३।१।११२ क्यप् प्रत्यय ११०. का० ग्रहोऽपिप्रतिभ्यां वा ४।२।२६ क्यप् प्रत्यय प्रत्यपिभ्यां ग्रहेश्छन्दसि ३।१।११८ क्यप् प्रत्यय १११. का० पदपक्ष्ययोश्च ४।२।२७ क्यप् प्रत्यय पा० पदास्वैरिबाह्यापक्ष्येषु च ३।१।११९ क्यप् प्रत्यय ११२. का० वो नीपूभ्यां कल्कमुञ्जयोः ४।२।२८ क्यप् प्रत्यय पा० विपूयविनीयजित्या मुञ्जकल्कहलिषु ३।१।११७ निपातनविधि ११३. का० कृवृषिमृजां वा ४।२।२९ क्यप् प्रत्यय ___ पा० मृजेर्विभाषा, विभाषा कृवृषोः ३।१।११३, १२० क्यप् प्रत्यय ११४. का० सूर्यरुच्याव्यथ्या: कर्तरि ४।२।३० निपातनविधि पा० राजसूयसूर्यमृषोद्यरुच्यकुप्य० । ३।१।११४ निपातनविधि ११५. का० भिद्योद्ध्यौ नदे ४।२।३१ निपातनविधि पा० भिद्योद्ध्यौ नदे ३।१।११५ निपाननतिधि ११६. का० पुष्यसिध्यौ नक्षत्रे ४।२।३२ निपातनविधि पा० पुष्यसिध्यौ नक्षत्रे ३।१।११६ निपातनविधि ११७. का० युग्यं पत्रे ४।२।३३ निपातनविधि पा० युग्यं च पत्रे ३।१।१२१ निपातनविधि ११८. का० कृष्टपच्यकुप्ये संज्ञायाम् ४।२।३४ निपातनविधि पा० राजसूयसूर्यमृषोद्यरुच्य० ३।१।११४ निपातनविधि, ११९. का० ऋवर्णव्यञ्जनान्ताद् घ्यण ४।२।३५ घ्यण् प्रत्यय पा० ऋहलोय॑त् ३।१।१२४ ण्यत् प्रत्यय १२०. का० आसुयुवपिरपिलपित्रपिदभिचमां च ४।२।३६ घ्यण् प्रत्यय पा० आसुयुवपिरपिलपित्रपिचमश्च ३।१।१२६ ण्यत् प्रत्यय साम्य साम्य साम्य उत्कर्ष अपकर्ष साम्य साम्य उत्कर्ष अपकर्ष लाघव गौरव साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य साम्य माम्य साम्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824