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कातन्त्रव्याकरणम्
१३३९. युवुझामनाकान्ताः [४।६।५४] [सूत्रार्थ] 'यु' को अन, 'वु' को अक तथा 'झ' को अन्त आदेश होता है।।१३३९। [दु० वृ०]
एषां स्थाने 'अन-अक-अन्त' इत्येते आदेशा भवन्ति यथासङ्घयम्। नन्दनः. पाचकः, गण्डयन्त:, मण्डयन्तः। “गण्डिमण्डिजिनन्दिभ्यो झच्' (कात०३०३।१६)। कथं भुज्युः, मृत्युः? “भुजिमृङ्भ्यां युक्त्युको'' (कात० उ० २/३४)। औणादिकस्य बहुलत्वात् कृदधिकाराच्च। ऊर्णाः सन्त्यस्य ऊर्णायुः।।१३३९। [वि०प०]
युवु०। ऊर्णायुरिति। ऊर्णाशब्दादस्त्यर्थे युस्तद्धित इति।।१३३९। [क० त०]
यु०। वृत्तौ मृत्युरिति पाठो नास्ति, मृङस्त्यको विधानादिति कश्चित्। युक्त्युक्प्रत्यययोरपि युर्विद्यते इति कथमस्य नान इत्यथों निगदित इत्यन्यः।।१३३९।
[समीक्षा] __ शर्ववर्मा तथा पाणिनि दोनों ने ही 'य-व-झ' प्रत्ययों के स्थान में क्रमश: 'अनअक-अन्त' आदेश किए हैं। पाणिनि के एतदर्थ दो सूत्र हैं- “युवोरनाको, झोऽन्तः" (अ० ७।१।१,३)। इस प्रकार पाणिनीय सूत्रद्वयप्रयुक्त गौरव के अतिरिक्त उभयत्र पूर्ण समानता ही है।
[रूपसिद्धि]
१. नन्दनः। नन्द-यु-अन-सि। 'टुनदि समृद्धौ' (१।२५) धातु से “नन्द्यादेर्युः" (४।२।४९) सूत्र द्वारा 'यु' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से 'यु' को 'अन' आदेश तथा विभक्तिकार्य।
२. पाचकः। पच्+वुण्-अक-सि। 'डु पचष् पाके' (१।६०३) धातु से “वुणतृचौ'' (४।२।४७) सूत्र द्वारा 'वुण्' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से 'वु' को 'अक' आदेश, उपधादीर्घ तथा विभक्तिकार्य।
३-४. गण्डयन्तः। गण्ड्+झच्-अन्त-सि। मण्डयन्तः। मण्ड्+झच्-अन्त- सि। 'गडि वदनैकदेशे' (१।१३१) तथा 'मडि भूषायाम्' (१।१०३) धातुओं से "गण्डिमण्डिजिनन्दिभ्यों झच्” (कात० उ०३।१६) सूत्र द्वारा ‘झच्' प्रत्यय, प्रकृतसूत्र से 'झ' को 'अन्त' आदेश, इडागम, गुण, अयादेश तथा विभक्तिकार्य।।१३३९।