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________________ ५८४ कातन्त्रव्याकरणम् १३३९. युवुझामनाकान्ताः [४।६।५४] [सूत्रार्थ] 'यु' को अन, 'वु' को अक तथा 'झ' को अन्त आदेश होता है।।१३३९। [दु० वृ०] एषां स्थाने 'अन-अक-अन्त' इत्येते आदेशा भवन्ति यथासङ्घयम्। नन्दनः. पाचकः, गण्डयन्त:, मण्डयन्तः। “गण्डिमण्डिजिनन्दिभ्यो झच्' (कात०३०३।१६)। कथं भुज्युः, मृत्युः? “भुजिमृङ्भ्यां युक्त्युको'' (कात० उ० २/३४)। औणादिकस्य बहुलत्वात् कृदधिकाराच्च। ऊर्णाः सन्त्यस्य ऊर्णायुः।।१३३९। [वि०प०] युवु०। ऊर्णायुरिति। ऊर्णाशब्दादस्त्यर्थे युस्तद्धित इति।।१३३९। [क० त०] यु०। वृत्तौ मृत्युरिति पाठो नास्ति, मृङस्त्यको विधानादिति कश्चित्। युक्त्युक्प्रत्यययोरपि युर्विद्यते इति कथमस्य नान इत्यथों निगदित इत्यन्यः।।१३३९। [समीक्षा] __ शर्ववर्मा तथा पाणिनि दोनों ने ही 'य-व-झ' प्रत्ययों के स्थान में क्रमश: 'अनअक-अन्त' आदेश किए हैं। पाणिनि के एतदर्थ दो सूत्र हैं- “युवोरनाको, झोऽन्तः" (अ० ७।१।१,३)। इस प्रकार पाणिनीय सूत्रद्वयप्रयुक्त गौरव के अतिरिक्त उभयत्र पूर्ण समानता ही है। [रूपसिद्धि] १. नन्दनः। नन्द-यु-अन-सि। 'टुनदि समृद्धौ' (१।२५) धातु से “नन्द्यादेर्युः" (४।२।४९) सूत्र द्वारा 'यु' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से 'यु' को 'अन' आदेश तथा विभक्तिकार्य। २. पाचकः। पच्+वुण्-अक-सि। 'डु पचष् पाके' (१।६०३) धातु से “वुणतृचौ'' (४।२।४७) सूत्र द्वारा 'वुण्' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से 'वु' को 'अक' आदेश, उपधादीर्घ तथा विभक्तिकार्य। ३-४. गण्डयन्तः। गण्ड्+झच्-अन्त-सि। मण्डयन्तः। मण्ड्+झच्-अन्त- सि। 'गडि वदनैकदेशे' (१।१३१) तथा 'मडि भूषायाम्' (१।१०३) धातुओं से "गण्डिमण्डिजिनन्दिभ्यों झच्” (कात० उ०३।१६) सूत्र द्वारा ‘झच्' प्रत्यय, प्रकृतसूत्र से 'झ' को 'अन्त' आदेश, इडागम, गुण, अयादेश तथा विभक्तिकार्य।।१३३९।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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