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कातन्त्रव्याकरणम्
[समीक्षा]
'चर्मपूरम, उदरपूरम्' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ पाणिनि ने णमुल प्रत्यय किया है- "चर्मोदरयोः पूरेः'' (अ० ३।४।३१)। इस प्रकार पाणिनीय ‘उ-ल' अनवन्धों के अतिरिक्त तो उभयत्र समानता ही है।
[विशिष्ट वचन]
१. वस्तुतस्तु उदरैकदेशपूरणानन्तरमपि भोजनं प्रवर्तते, तदपेक्षया पूर्वकालता (क० त०)।
[रूपसिद्धि]
१. चर्मपूरं ददाति। चर्म+पृ- इन्- णम् + अम्। 'चर्म' शब्द के उपपद में रहने पर 'पूरि' धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णम्' प्रत्यय, इकारलोप तथा विभक्तिकार्य।।
२. उदरपूरं भुङ्क्ते। उदर-पृ-इन्+णम्+अम्। 'उदर' शब्द के उपपद में रहने पर इन्प्रत्ययान्त 'पृ' धातु से ‘णम्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत्।।१२९८।
१२९९. वर्षप्रमाण ऊलोपश्च वा [४।६।१४] [सूत्रार्थ
वृष्टिविषयक परिमाण अर्थ के गम्यमान होने पर तथा कर्म के उपपद में रहने पर 'पूरि' धातु से ‘णम्' प्रत्यय एवं ऊकार-लोप होता है।।१२९९।
[दु०वृ०]
कर्मण्युपपदे वर्षप्रमाणे गम्यमाने पूरयतेर्णम् भवति पूरयतेरूलोपश्च वा भवति। गोष्पदपूरं वृष्टो देवः, गोष्पदपं वृष्टो देवः।।१२९९।
[दु०टी०]
वर्ष०। सूत्रे एकारस्याय् न क्रियते मन्दधियां सुखार्थम्। पूरयतेः प्रकृतत्वात् पूरयतेरेव णम्प्रत्ययान्तस्य ऊलोपो विज्ञायते न तूपपदस्येत्याहपूरयतेरूलोपश्चेति।।१२९९।
[क० त०]
वर्ष ०। वृष्टिर्वर्षं न तु वत्सरस्तदर्थस्याघटनादिति कश्चित्। वस्तुतस्तु तदा निःसन्देहार्थं वत्सरप्रमाण इति विदध्यात्। वृष्टेः प्रमाणं तु महत्त्वाल्पत्वभेदाद् बोध्यम्। ननु संख्ययापि प्रमीयते इति प्रमाणशब्देन संख्यानमेवोच्यताम्, तदा च तेन सह वत्सरशब्दस्यान्वयोऽस्तु वत्सरस्य प्रमाणे संख्याने गम्यमाने इति, नैवम्, तदापि वत्सरसंख्यान इति कुर्यात्। गोष्पदपूरमिति। गवां पदाङ्कितस्थानं पूरयित्वेत्यर्थः। एतेनाल्पत्वं प्रतिपादितमिति।। १२९९।