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कातन्त्रव्याकरणम्
[समीक्षा
'व्यहं तर्षम्, व्यहतर्षम्' इत्यादि शब्दों की सिद्धि कातन्त्रकार ने णम् प्रत्यय तथा पाणिनि ने णमुल् प्रत्यय से की है। पाणिनि का सूत्र है- “अस्यतितृषा: क्रियान्तरे कालेषु'' (अ०३।४।५७)। इस प्रकार पाणिनीय ‘उ-ल्' अनुबन्धों के अतिरिक्त उभयत्र साम्य ही है।
[रूपसिद्धि]
१-२. व्यहं तर्षम्, व्यहतर्षं गाः पाययति। व्यहमभ्यासम्, व्यहाभ्यासं गा: पाययति । 'व्यहम्' शब्द के उपपद में रहने पर तृष- अस' धातुओं से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णम्' प्रत्यय, समास तथा विभक्तिकार्य।।१३२५।
१३२६. नाम्न्यादिशिग्रहोः [४।६।४१] [सूत्रार्थ]
द्वितीयान्त 'नाम' शब्द के उपपद में रहने पर आङ्-पूर्वक 'दिश' धातु तथा ग्रह धातु से णम् प्रत्यय होता है।।१३२६।
[दु० वृ०]
नाम्नि स्वरूपे द्वितीयान्ते उपपदे आदिशेर्पहेश्च णम् भवति। नामान्यादेशं नामादेशं ददाति। नामानि ग्राहं नामग्राहमाह्वयति।।१३२६।
[वि०प०] स्वं रूपं शब्दस्याशब्दसंज्ञेत्याह-नाम्नि स्वरूप इति।।१३२६। [क० त०]
नाम्न्या०। पज्यां स्वरूपमित्यादि। नन् नाम्न्यादि संज्ञा गम्यते। यथा “नाम्नि स्थश्च' (४।३।५) इत्यादौ। अन्यथा तत्र कथं स्वरूपस्य न ग्रहणम्? सत्यम्. शास्त्रीयसंज्ञा नास्तीति कृत्वा अत्र स्वरूपमिति न्यायस्यावतारः कृतः। तत्र लक्ष्यदृष्ट्या व्याप्तिन्यायाल्लौकिकसज्ञाया अपि ग्रहणमिति न दोषः।।१३२६।
[समीक्षा]
'नामादेशम्, नामग्राहम्' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ उक्त की तरह पाणिनीय 'उ-ल' अनुबन्धों के अतिरिक्त उभयत्र समानता ही है। पाणिनि का सूत्र है"नाम्न्यादिशिग्रहो:' (अ० ३।४।५८)।
[रूपसिद्धि]
१-२. नामादेशं ददाति। नामग्राहमाह्वयति। 'नाम' शब्द के उपपद में रहने पर आयूर्वक 'दिश्' धातु तथा ग्रह धातु से णम् प्रत्यय, लघूपध गुण, उपधादीर्घ तथा विभक्तिकार्य।।१३२६।