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चतुर्थे कृदध्याये पञ्चमो घञादिपादः
३. परमार्थतः पुनरखण्डमेवेदं वाक्यम् (दु० टी०)। ४. परस्परविरुद्धयोः सामानाधिकरण्यस्यानुपपत्तेः (वि० प० ) । ५. सङ्गत्या भूत एवार्थो घटते यतः इति भाव: ( क० च० ) । [रूपसिद्धि]
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१. अग्निष्टोमयाजी पुत्रोऽस्य जनिता । 'अग्निष्टोमेनेष्टवान्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार “करणेऽतीते यजः " ( ४।३।८१) सूत्र से भूतकाल में विहित णिनि प्रत्यय द्वारा 'अग्निष्टोमयाजी' शब्द सिद्ध होता है, परन्तु यहाँ उसका सम्बन्ध भविष्यत्काल से जोड़ा गया है।
२- ३. गोमान् आसीत् । गोमान् भविता । 'गावः सन्त्यस्य' इस व्युत्पत्ति के अनुसार वर्तमान में विहित मन्तु प्रत्यय से सिद्ध गोमान् का भूतकाल - भविष्यत्काल से सम्बन्ध बताया गया है।
४. कृतः कटः श्वो भविता । 'कृत' शब्द में विहित भूतार्थक 'क्त' प्रत्यय का सम्बन्ध यहाँ भविष्यत्काल से बताया गया है।
५. भावि कृत्यमासीत् । भविष्यदर्थक णिनि प्रत्यय अपने अर्थ को छोड़कर यहाँ भूतार्थ में साधु माना जाता है ।। १२८५ ।
।। इति सम्पादकीयसमीक्षायां चतुर्थे कृदध्याये पञ्चमो घञादिपादः समाप्तः । ।