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चतुर्थे कृदध्याये पञ्चमो घञादिपादः
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[समीक्षा]
‘निक्वणः, निक्वाणः' इत्यादि शब्दों के सिद्ध्यर्थ कातन्त्रकार ने 'अल्' प्रत्यय तथा पाणिनि ने 'अप्' प्रत्यय किया है। पाणिनि का सूत्र है - "क्वणो वीणायां च " (अ०३ | ३|६५)। अतः अनुबन्धभेद के अतिरिक्त तो सभी प्रकार की उभयत्र पूर्ण समानता ही है। [रूपसिद्धि]
१-२. क्वणः, क्वाणः। क्वण् + अल् + सि। निक्वणः, निक्वाणः । नि + क्वण् + अल् + सि । उपपदरहित तथा 'नि' उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'क्वण शब्दे' (१।१४६) धातु से 'अल्' प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य । पक्ष में घञ् प्रत्यय से 'क्वाणः, निक्वाण:' शब्दरूप सिद्ध होते हैं ।। १२२१ ।
१२२२. पण: परिमाणे नित्यम् [४।५।५० ]
[सूत्रार्थ]
परिमाण अर्थ में 'पण व्यवहारे स्तुतौ च' ( १।४०१ ) धातु से नित्य 'अल्’ प्रत्यय होता है ।। १२२२/
[दु० वृ०]
पणतेरल् भवति नित्यं परिमाणेऽर्थे । पणः शाकादीनामपि परिमिता मुष्टिः पण उच्यते । परिमाण इति किम् ? दास्या: पाणः । । १२२२ ।
[दु० टी०]
पणः। पण्यतेऽनेनेति पणः कपर्दिकादीनान्तावद् भवति, शाकमपीत्यर्थः ।। १२२२। [वि० प० ]
पणः। शाकादीनामपीति। न केवलं कपर्दिकादीनां विशिष्टेयत्ता पण इत्यपेरर्थः ॥ १२२२। [समीक्षा]
'पण:' शब्दरूप के सिद्ध्यर्थ कातन्त्रकार ने 'अल्' प्रत्यय तथा पाणिनि ने ‘अप्' प्रत्यय किया है। पाणिनि का सूत्र है — "नित्यं पण: परिमाणे” (अ०३।३।६६)। अतः अनुबन्धभेद को छोड़कर शेष सभी प्रकार की उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि]
१. पणः। पण् + अल् +सि । पण्यतेऽनेन । 'पण व्यवहारे स्तुतौ च' (१।४०१ ) धातु से प्रकृतसूत्र द्वारा 'अल् ' प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य ।।१२२२ ।
१२२३. समुदोरजः पशुषु [ ४।५ ।५१ ]
[सूत्रार्थ]
पशुओं के विषय में 'सम् - उद्' उपसर्गों के उपपद में रहने पर 'अज क्षेपणे च' (१।६४) धातु से 'अल्' प्रत्यय होता है || १२२३|