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२० कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
इसके पश्चात् छठे, सातवें और आठवें गुणस्थान में प्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क का बन्ध न होने से शेष ९ प्रकृतियों का ही बन्ध होता है। आठवें गुणस्थान के अन्त में हास्य, रति, भय और जुगुप्सा का बन्ध-विच्छेद हो जाने से नौवें गुणस्थान के प्रथम भाग में ५ प्रकृतियों का ही बन्धस्थान होता है। दूसरे भाग में वेद का अभाव हो जाने से ४ प्रकृतियों का, तीसरे भाग में संज्वलन क्रोध के बन्ध का अभाव हो जाने से तीन ही प्रकृतियों का बन्ध होता है। चौथे भाग में संज्वलन मान का बन्ध न होने से दो प्रकृतियों का बन्धस्थान है। पांचवें भाग में संज्वलन माया का अभाव होने से केवल एक संज्वलन लोभ का ही बन्ध होता है। इससे आगे सज्वलन लोभ प्रकृति का भी बन्ध नहीं होता है। इस प्रकार मोहनीय कर्म के दस बन्धस्थान जानने चाहिए।
मोहनीय कर्म के भूयस्कार आदि बन्ध-मोहनीय कर्म के दस बन्धस्थानों में नौ भूयस्कारबन्ध होते हैं-(१) एक को बांधकर दो का बन्ध करने पर प्रथम भूयस्कारबन्ध, (२) दो को बांधकर तीन का बन्ध करने पर द्वितीय भूयस्कारबन्ध, (३) इसी प्रकार तीन को बांधकर चार का बन्ध करने पर तीसरा भूयस्कारबन्ध, (४) चार को बांधकर पांच का बन्ध करने पर चौथा, (५) पांच का बंध करके नौ का बन्ध करने पर पाँचवाँ, (६) नौ का बन्ध करके तेरह का बन्ध करने पर छठा, (७) तेरह का बन्ध करके सत्रह का बन्ध करने पर सातवाँ, (८) सत्रह का बन्ध करके इक्कीस का बन्ध करने पर आंठवाँ, और (९) इक्कीस का बन्ध करके बाईस का बन्ध करने पर नौवाँ भूयस्कार बन्ध हुआ।
आठ अल्पतर बन्ध-(१) बाईस का बन्ध करके सत्रह का बन्ध करने पर पहला अल्पतर बन्ध होता है। (२) सत्रह का बन्ध करके तेरह का बन्ध करने पर दूसरा अल्पतर बन्ध होता है। (३) तेरह का बन्ध करके नौ का बन्ध करने पर तीसरा। (४) नौ का बन्ध करके पांच का बन्ध करने पर चौथा, (५) पांच का बन्ध करके चार का बन्ध करने पर पाँचवाँ, (६) चार का बन्ध करके तीन का बन्ध करने पर छठा, (७) तीन का बन्ध करके दो का बन्ध करने पर सातवाँ, और (८) दो का बन्ध करके एक का बन्ध करने पर आठवाँ अल्पतरबन्ध होता है।
दस अवस्थित बन्ध-बन्धस्थान दस होने से अवस्थितबन्ध भी दस होते हैं।
दो अवक्तव्य बन्ध-ग्यारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म का बन्ध न करके जब कोई जीव वहाँ से च्युत होकर नौवें गुणस्थान में आता है और संज्वलन लोभ का बन्ध करता है, तब प्रथम अवक्तव्यबन्ध होता है। (२) यदि ग्यारहवें गुणस्थान में १. पंचम कर्मग्रन्थ गा. २४ की व्याख्या पृ. १०४, १०५
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