Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
होकर जो गाया जाय ३. अलंकृत - परस्पर विशेष रूप से जो गाया जाय ४. व्यक्त - जिसमें अक्षर और स्वर स्पष्ट रूप से गाये जायं ५. अविधुष्ट - जो विस्वर और आक्रोश युक्त न हो ६. मधुर जो मधुर स्वर से गाया जाय ७. सम जो ताल, वंश, स्वर आदि से मेल खाता हुआ गाया जाय ८. सुललित - जो श्रेष्ठ घोलना प्रकार से श्रोत्रेन्द्रिय को सुखद लगे इस प्रकार गाया जाय। ये गेय के आठ गुण हैं ।
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तस्स णं वणसंडस्स तत्थ २ देसे २ तहिं २ बहवे खुड्डा खुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ गुंजालियाओ दीहियाओ सराओ सरपंतियाओ सरसरपंतीओ बिलपंतीओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जमयतलाओ वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडाओ समतीराओ णवणीयतलाओ सुवण्णसुब्भ( ज्झ )रययमणिवालुयाओ सुहोयारासुउत्ताराओ णाणामणितित्थसुबंद्धाओ चाउ(चउ )क्कोणाओ समतीराओ आणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पलकुमुयणलिणसुभगसोगंधियपोंडरीयसयपत्तसहस्सपत्तफुल्लकेसरोवइयाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ परिहत्थभमंतमच्छकच्छभअणेगसउणमिहुणपरिचरियाओ पत्तेयं पत्ते पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ अप्पेगइयाओ आसवोदाओ अप्पेगइयाओ वारुणोदाओ अप्पेगइयाओ खीरोदाओ अप्पेगइयाओ घओदाओ अप्पेगइयाओ ( इक्खु ) खोदोदाओ ( अमयरससमरसोदाओ) अप्पेगइयाओ पगईए उदग (अमय) रसेणं पण्णत्ताओ पासाईयाओ ४, तासि णं खुड्डियाणं वावीणं जाव बिलपंतियाणं तत्थ २ देसे २ तहिं २ जाव बहवे तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता ।
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कठिन शब्दार्थ - सरसरपंतीओ सरसरपंक्तियां - जिन तालाबों में कुएं का पानी नालियों द्वारा लाया जाता है, रययामयकुलाओ - चांदी के बने हुए किनारे, वइरामयपासाणाओ - वज्रमय पाषाण, सुवण्णसुज्झरययमणिवालुयाओ स्वर्ण और शुद्ध चांदी (रजत विशेष ) की रेत, सुहोयारासुउत्ताराओसुखपूर्वक प्रवेश और निष्क्रमण योग्य, आणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयजलाओ - जिनका जलस्थान क्रमशः गहरा और जिनका जल अगाध और शीतल है, संछण्णपत्तभिसमुणालाओ - ढंके हुए पद्मिनी के पत्र, कंद और पद्मनाल, परिहत्थभमंतमच्छकच्छभ अणेगसउणमिहुणपरिचरियाओ - बहुत सारे मत्स्य और कच्छप तथा पक्षियों के जोड़े इधर उधर घूमते रहते हैं, आसवोदाओ आसव जैसे स्वाद वाला पानी, वारुणोदाओ - वारुणसमुद्र जैसा जल, खीरोदाओ - दूध के स्वाद वाला जल, उदगरसेणं - उदक रस जैसा ।
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