Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - अरुणद्वीप, अरुणोदक समुद्र वर्णन
२२९
कुंडले दीवे कुंडलभद्दकुंडलमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया०, कुंडलोदे समुद्दे चक्खुसुभचक्खुकंता एत्थ दो देवा महिड्डिया०। कुंडलवरे दीवे कुंडलवरभद्दकुंडलवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया०, कुंडलवरोदे समुद्दे कुंडलवर( वर) कुंडलवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया०॥ __ कुंडलवरावभासे दीवे कुंडलवरावभासभद्दकुंडलवरावभासमहाभद्दा एत्थ दो देवा०॥ कुंडलवरोभासोदे समुद्दे कुंडलवरोभासवरकुंडलवरोभासमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया० जाव पलिओवमट्ठिइया परिवसंति०॥
भावार्थ - अरुणवरोद समुद्र को अरुणवरावभास नामक द्वीप चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है यावत् वहां अरुणवरावभासभद्र एवं अरुणवरावभासमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। इसी तरह अरुणवरावभास समुद्र में अरुणवरावभासवर एवं अरुणवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव वहां रहते हैं। शेष वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये।
कुण्डलद्वीप में कुण्डलभद्र एवं कुण्डलमहाभद्र नाम के दो देव रहते हैं और कुण्डलोद समुद्र में चक्षुशुभ और चक्षुकांत नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष वर्णन पूर्ववत्। ।
कुंडलवरद्वीप में कुण्डलवरभद्र और कुण्डलवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। कुण्डलवरोद समुद्र में कुण्डलवर और कुण्डलवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं।
- कुण्डलवरावभास द्वीप में कुण्डलवरावभासभद्र और कुण्डलवरावभास महाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। कुण्डलवरावभासोदक समुद्र में कुण्डलवरोभासवर एवं कुण्डलवरोभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। ये देव पल्योपम की स्थिति वाले हैं आदि वर्णन कह देना चाहिये। ___ कुंडलवरोभासोदं णं समुदं रुयगे णामं दीवे वट्टे वलया० जाव चिह, किं समचक्क० विसमचक्कवाल०? गोयमा! समचक्कवाल० णो विसमचक्कवालसंठिए, केवइयं चक्कवाल० पण्णत्ते?० सव्वट्ठमणोरमा एत्थ दो देवा सेसं तहेव। रुयगोदे णामं समुद्दे जहा खोदोदे समुद्दे संखेजाइं जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखेजाइं जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं दारा दारंतरंपि संखेजाइं जोइसंपि सव्वं संखेजं भाणियव्वं, अट्ठो वि जहेव खोदोदस्स णवरि सुमणसोमणसा एत्थ दो देवा महिड्डिया तहेव रुयगाओ आढत्तं असंखेजं विक्खंभो परिक्खेवो दारा दारंतरं च जोइसं च सव्वं असंखेनं भाणियव्वं ।
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