Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पंचम प्रतिपत्ति - निगोद वर्णन
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के दो भेद कहे गये हैं। सूक्ष्म निगोद सारे लोक में ठसाठस भरे हुए हैं और बादर निगोद मूल, कंद आदि रूप हैं।
सुहमणिओया णं भंते! कइविहा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य॥ बायरणिओयावि दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य॥ णिओयजीवा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा पण्मत्ता, तंजहा-सुहमणिओयजीवा य बायरणिओयजीवा य। सुहु मणिओयजीवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगा य अपजत्तगा य। बायरणिओयजीवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य॥२३८॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सूक्ष्म निगोद कितने प्रकार के हैं ? .. उत्तर - हे गौतम! सूक्ष्म निगोद दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। बादर निगोद के भी दो भेद कहे गये हैं। यथा - पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
प्रश्न - हे भगवन्! निगोद जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! निगोद जीव दो प्रकार के हैं-१. सूक्ष्म निगोद जीव और २. बादर निगोद जीव। - सूक्ष्म निगोद जीव दो प्रकार के कहे गये हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। बादर निगोद जीव भी दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
विवेचन - निगोद और निगोद जोव के दो दो भेद कहे गये हैं - सूक्ष्म और बादर तथा प्रत्येक के दो दो भेद कहे गये हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। णिओया णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा असंखेजा अणंता? . गोयमा! णो संखेजा असंखेज्जा णो अणंता, एवं पजत्तगावि अपज्जत्तगावि॥ सुहमणिओया णं भंते! दबट्टयाए किं संखेजा असंखेजा अणंता?
गोयमा! णो संखेज्जा असंखेजा णो अणंता, एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि, एवं बायरावि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि णो संखेज्जा असंखेज्जा णो अणंता॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
उत्तर - हे गौतम! निगोद द्रव्य की अपेक्षा संख्यात नहीं हैं, असंख्यात हैं, अनन्त नहीं हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक भी कह देने चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन् ! सूक्ष्म निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
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