Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 347
________________ ३३० जीवाजीवाभिगम सूत्र ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• समऊणं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं समऊणाई, एवं मणुस्साणवि जहा तिरिक्खजोणियाणं, देवाणं जहा णेरइयाणं ठिई॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! प्रथम समय नैरयिक की स्थिति कितने काल की कही गई है ? .. उत्तर - हे गौतम! प्रथम समय नैरयिक की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय की है। अप्रथम समय नैरयिक की स्थिति जघन्य एक समय कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम की है। प्रथम समय तिर्यंच योनिक की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय की है। अप्रथम समय तिर्यंच योनिक की स्थिति जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण और उत्कृष्ट एक समय कम तीन पल्योपम की है। इस प्रकार मनुष्यों की स्थिति तिर्यंचों के समान और देवों की स्थिति नैरयिकों के समान कह देनी चाहिये। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आठ प्रकार के संसारी जीवों की स्थिति का कथन किया गया है। प्रथम समय नैरयिक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति एक समय की है क्योंकि द्वितीय आदि समयों में वह प्रथम समय वाला नहीं रहता। अप्रथम समय नैरयिक की स्थिति जघन्य एक समय कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम की है। नैरयिकों की तरह ही देवों की स्थिति भी समझ लेनी चाहिये। प्रथम समय तिर्यंच की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति एक समय की तथा अप्रथम समय तिर्यंच की स्थिति जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण (२५६ आवलिकाओं का एक क्षुल्लक भव होता है) और उत्कृष्ट एक समय कम तीन पल्योपम की है। तिर्यंचों के समान ही मनुष्यों की स्थिति भी समझनी चाहिये। __णेरइयदेवाणं जच्चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणा दुविहाणवि। पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढ० कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एक्कं समयं, अपढम० तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। पढमसमयमणुस्साणं जहण्णेणं उक्कोसेणं एक्कं समयं, अपढम० मणुस्साणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियाइं समयऊणाई॥ भावार्थ - नैरयिकों और देवों की जो भवस्थिति है वही उन दोनों की संचिट्ठणा (कायस्थिति) है। प्रश्न - हे भगवन् ! प्रथम समय तिर्यंच की संचिट्ठणा कितनी कही गई है? उत्तर - हे गौतम! प्रथम समय तिर्यंच का संचिट्ठणा काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय का है। अप्रथम समय तिर्यंच की संचिट्ठणा जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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