Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 397
________________ ३८० जीवाजीवाभिगम सूत्र ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••000000000+ अवधिज्ञानी की कायस्थिति जघन्य एक समय है। यह अवधिज्ञान होने के अनन्तर समय में मरण हो जाने से अथवा प्रतिपात से मिथ्यात्व में जाने से (विभंगज्ञान होने से) समझना चाहिये। उत्कृष्ट कायस्थिति साधिक छियासठ सागरोपम की है जो मतिज्ञानी की तरह समझनी चाहिये। मनः पर्यवज्ञानी की कायस्थिति जघन्य एक समय की है क्योंकि द्वितीय समय में मरण होने से प्रतिपात हो सकता है। उत्कृष्ट कायस्थिति देशोन पूर्वकोटि की है। क्योंकि उत्कृष्ट चारित्रकाल इतना ही है। केवलज्ञानी सादि अपर्यवसित होने से कायस्थिति नहीं है। अज्ञानी तीन प्रकार के कहे गये हैं - १. अनादि अपर्यवसित २. अनादि सपर्यवसित और ३. सादि सपर्यवसित। इनमें सादि सपर्यवसित अज्ञानी की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त की है क्योंकि इसके बाद कोई सम्यक्त्व पाकर पुनः ज्ञानी हो सकता है। उत्कृष्ट कायस्थिति अनंतकालदेशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त रूप है। इतने काल पश्चात् अवश्य ज्ञानी बनता ही है। ... अन्तर - आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्यव ज्ञानी का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त का है। इतने काल पश्चात् वह पुनः आभिनिबोधिक ज्ञानी आदि हो सकता है। केवलज्ञानी का अन्तर नहीं है। ___अपर्यवसित और अनादि होने से प्रारम्भ के दो अज्ञानी का अंतर नहीं है। सादि सपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम का है। इतने काल में वह पुनः ज्ञानी से अज्ञानी हो सकता है। अल्पबहुत्व - मनःपर्यवज्ञान केवल विशिष्ट चारित्र वालों को ही होता है अत: सबसे थोड़े मन:पर्यव ज्ञानी है उनसे अवधिज्ञानी असंख्यातगुणा हैं क्योंकि देवों और नैरयिकों को भी अवधिज्ञान होता है उनसे अभिनिबोधिक ज्ञानी और श्रुतज्ञानी दोनों विशेषाधिक और परस्पर तुल्य हैं उनसे केवलज्ञानी अनंतगुणा हैं क्योंकि केवलज्ञानी सिद्ध अनंत हैं, उनसे अज्ञानी अनंतगुणा हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक सिद्धों से अनंतगुणा हैं। ___ अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-एगिंदिया बेंदिया तेंदिया चउरिदिया पंचेंदिया अणिंदिया। संचिट्ठणंतरा जहा हेट्ठा। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया चउरिदिया विसेसाहिया तेइंदिया विसेसाहिया बेंदिया विसेसाहिया अणिंदिया अणंतगुणा एगिंदिया अणंतगुणा॥२६३॥ भावार्थ - अथवा सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. एकेन्द्रिय २. बेइन्द्रिय ३. तेइन्द्रिय ४. चउरिन्द्रिय ५. पंचेन्द्रिय और ६. अनिन्द्रिय। इनकी कायस्थिति और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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