Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 415
________________ ३९८ जीवाजीवाभिगम सूत्र प्रश्न - हे भगवन् ! अनिन्द्रिय का अंतर कितने काल का कहा गया है? ... उत्तर - हे गौतम! सादि अपर्यवसित होने से अनिन्द्रिय का अन्तर नहीं है। प्रश्न - हे भगवन्! इन पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चउरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे तेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक असंख्यातगुणा हैं, उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अनिन्द्रिय अनंतगुणा हैं और उनसे वनस्पतिकायिक अनंतगुणा हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वर्णित सर्व जीवों के पृथ्वीकायिक यावत् अनिन्द्रिय तक के दस भेदों की कायस्थिति, अंतर और अल्पबहुत्व का स्पष्टीकरण पूर्व के सूत्रों में दिया जा चुका है। जिज्ञासुओं को वहां से देख लेना चाहिये। अहवा दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-पढमसमयणेरइया अपढमसमयणेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा॥ पढमसमयणेरइए णं भंते! पढमसमयणेरइएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! एक्कं समयं, अपढमसमयणेरइए णं भंते!? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई समऊणाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समऊणाइं, पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते!०? गोयमा! एक्कं समयं, अपढमसमयतिरिक्खजोणिए० जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, पढमसमयमणूसे णं भंते!? गोयमा! एक्कं समयं, अपढमसमय मणूसे णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्बकोडिपुहुत्तमब्भहियाई, देवे जहा णेरइए। पढमसमयसिद्धे णं भंते!०? गोयमा! एक्कं समयं, अपढमसमयसिद्धे णं भंते!०? गोयमा! साइए अपज्जवसिए। पढमसमयणेर० भंते! अंतरं कालओ०? गोयमा! जहण्णणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई उक्कोसेणं वणस्सइकालो, अपढमसमयणेर० अंतरं कालओ केव०? गोयमा! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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