Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 413
________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र तिर्यंच असंख्यातगुणा, उनसे अप्रथम समय नैरयिक असंख्यातगुणा, उनसे अप्रथम समय देव असंख्यातगुणा, उनसे सिद्ध अनंतगुणा और उनसे अप्रथम समय तिर्यंच अनंतगुणा हैं । इस प्रकार सर्वजीवों की नवविध प्रतिप्रत्ति समाप्त हुई । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में अपेक्षा भेद से सर्व जीवों के प्रथम समय नैरयिक आदि नौं भेद कहे गये हैं। इन भेदों की कायस्थिति, अंतर और अल्पबहुत्व का स्पष्टीकरण पूर्व प्रतिपत्तियों के अनुसार स्पष्ट है। ३९६ - सर्व जीव दसविध वक्तव्यता तत्थ णं जे ते एवमाहंसु - दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहापुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचेंदिया अणिंदिया ॥ पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया, एवं आउतेउवाउकाइए, वणस्सइकाइए णं भंते! ०? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, बेंदिए णं भंते! ० ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेज्जं काल, एवं तेइंदिएवि चउरिदिएवि, पंचिंदिए णं भंते! ० ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं साइरेगं, अणिंदिए णं भंते!० ? गोयमा! साइए अपज्जवसिए ॥ पुढविकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स, वणस्सइकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ० ? जा चेव पुढविकाइयस्स संचिट्ठणा, बियतियचउरिंदियपंचेंदियाणं एएसिं चउण्हंपि अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, अणिंदियस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ एएस णं भंते! पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं बेंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचेंदियाणं अणिंदियाण य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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