Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 402
________________ सर्व जीवाभिगम-सर्व जीव सप्तविध वक्तव्यता ३८५ भावार्थ - अथवा सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. कृष्णलेशी २. नीललेशी ३. कापोतलेशी ४. तेजोलेशी ५. पद्मलेशी ६. शुक्ललेशी और ७. अलेशी। प्रश्न - हे भगवन्! कृष्णलेशी, कृष्णलेशी रूप में कितने काल तक रह सकता है ? उत्तर - हे गौतम! कृष्णलेशी, कृष्णलेशी रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक रह सकता है। नीललेश्या वाला जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक दस सागरोपम तक रह सकता है। कापोत लेश्या वाला जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक तीन सागरोपम रह सकता है। तेजोलेशी जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यात भाग अधिक तीन सागरोपम तक रह सकता है। पद्मलेशी जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यात भाग अधिक दस सागरोपम तक रहता है। शुक्ललेश्या वाला जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक रह सकता है। अलेशी सादि अपर्यवसित है अत: सदा काल उसी रूप में रहते हैं। प्रश्न - हे भगवन्! कृष्णलेश्या का अंतर कितने काल का कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम का अंतर है। इसी प्रकार नीललेश्या और कापोत लेश्या का भी अन्तर समझना चाहिये। तेजोलेश्या का अन्तर जघन्य अंतर्महत और उत्कष्ट वनस्पतिकाल है। पद्मलेश्या और शक्ललेश्या का अंतर भी इतना ही है। प्रश्न - हे भगवन् ! अलेशी का अन्तर कितने काल का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! अलेशी सादि अपर्यवसित होने से उसका अन्तर नहीं है। प्रश्न - हे भगवन् ! इन कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी, तेजोलेशी, पद्मलेशी, शुक्ललेशी और अलेशी जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े शुक्ल लेश्या वाले, उनसे पद्मलेश्या वाले संख्यातगुणा, उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणा, उनसे अलेशी अनंतगुणा, उनसे कापोत लेश्या वाले अनंतगुणा, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक, उनसे कृष्ण लेश्या वाले विशेषाधिक हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सर्वजीव के सात भेद बताये हैं। यथा - १. कृष्ण लेश्या वाले २. नील लेश्या वाले ३. कापोत लेश्या वाले ४. तेजोलेश्या वाले ५. पद्मलेश्या वाले ६. शुक्ललेश्या वाले और ७. अलेश्य-लेश्या रहित। इन सात भेदों की कायस्थिति, अंतर और अल्पबहुत्व इस प्रकार है - कायस्थिति - कृष्ण लेश्या की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त है क्योंकि तिर्यंच मनुष्यों में कृष्ण लेश्या अंतर्मुहूर्त तक रहती है उत्कृष्ट कायस्थिति अंतर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम की कही है। देव और नैरयिक पूर्वभवगत अंतर्मुहूर्त से लेकर आगे के प्रथम अंतर्मुहूर्त तक अवस्थित लेश्या वाले होते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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