Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 400
________________ सर्व जीवाभिगम-सर्व जीव सप्तविध वक्तव्यता ३८३. अन्तर - औदारिक शरीरी का अन्तर जघन्य एक समय है। प्रथम समय में कार्मण शरीरी होने से वह दो समय वाली अपान्तराल गति में होता है। उत्कृष्ट अंतर अंतर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम का है। अन्तर्मुहूर्त शेष रहते वैक्रिय शरीर बनाए हुए तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य काल करके नरक में तेतीस सागरोपम की स्थिति में उत्पन्न होते हैं उनकी अपेक्षा यह अन्तर समझना चाहिये। वैक्रिय शरीरी का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। इतने काल बाद वह पुनः वैक्रिय शरीरी हो जाता है। जघन्य अंतर मनुष्य और देवों के वैक्रिय की अपेक्षा से कहा है। आहारक शरीरी का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट अनंतकाल-देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त का है। तैजस शरीरी कार्मण शरीरी का अन्तर नहीं है। - अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े आहारक शरीरी हैं क्योंकि ये अधिक से अधिक दो हजार से नौ हजार तक ही होते हैं। उनसे वैक्रिय शरीरी असंख्यातगुणा हैं क्योंकि नैरयिक, देव, गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और वायुकाय वैक्रिय शरीरी हैं। उनसे औदारिक शरीरी असंख्यातगुणा हैं क्योंकि निगोद में अनंत जीवों का एक ही औदारिक शरीर होने से असंख्यातगुणा हैं। औदारिक शरीरी से अशरीरी अनंतगुणा हैं क्योंकि सिद्ध अनंत हैं। उनसे तैजस कार्मण शरीरी अनंतगुणा और स्वस्थान परस्पर तुल्य हैं। क्योंकि निगोदों में तैजस कार्मण शरीर प्रत्येक जीव के अलग-अलग हैं और वे अनंतगुणा हैं। इस प्रकार षड्विध सर्व जीव प्रतिपत्ति समाप्त हुई। . सर्वजीव सप्तविध वक्तव्यता तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-सत्तविहा सव्वज़ीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहापुढविकाइया आंउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया अकाइया। संचिट्ठणंतरा जहा हेट्ठा। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा तसकाइया तेउकाइया असंखेजगुणा पुढविकाइया विसेसाहिया आउकाइया विसेसाहिया वाउकाइया विसेसाहिया सिद्धा अणंतगुणा वणस्सइकाइया अणंतगुणा ॥२६५॥ भावार्थ - जो ऐसा प्रतिपादित करते हैं कि सर्व जीव सात प्रकार के हैं, वे सात भेद इस प्रकार कहे गये हैं - १. पृथ्वीकायिक २. अप्कायिक ३. तेजसकायिक ४.. वायुकायिक ५. वनस्पतिकायिक ६. त्रसकायिक और ७. अकायिक। इनके संचिट्ठणा और अंतर का कथन पहले किया जा चुका है। अल्प बहुत्व में - सबसे थोड़े त्रसकायिक, उनसे तेजस्कायिक असंख्यातगुणा, उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, उनसे अप्कायिक विशेषाधिक, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक, उनसे अकायिक अनंतगुणा और उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुणा हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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