Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text ________________
३८४
जीवाजीवाभिगम सूत्र
विवेचन - सकायिक अकायिक को लेकर सर्व जीव सात प्रकार के कहें गये हैं - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक और अकायिक। इन भेदों की कायस्थिति, अंतर और अल्पबहुत्व पूर्व में कहे अनुसार समझ लेना चाहिये। __ अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-कण्हलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा॥
कण्हले से णं भंते! कण्हलेस्सेत्ते कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, णीललेस्से णं० जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेजइभागमब्भहियाई, काउलेस्से णं भंते!०? गोयमा! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेजइभागमब्भहियाई, तेउलेस्से णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं दोण्णि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेजइभागमभहियाई, पम्हलेसे णं भंते!०? गोयमा! जहण्णणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहत्तमब्भहियाई, सुक्कलेसे णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, अलेस्से णं भंते!० साइए अपजवसिए॥
कण्हलेसस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तम०, एवं णीललेस्सस्सवि, काउलेस्सस्सवि, तेउलेसस्स णं भंते! अंतरं कालओ०? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं पम्हलेसस्सवि सुक्कलेसस्सवि दोण्हवि, एवमंतरं, अलेसस्स णं भंते! अंतरं कालओ०? गोयमा! साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं॥
एएसि णं भंते! जीवाणं कण्हलेसाणं णीललेसाणं काउलेसाणं तेउलेसाणं पम्हलेसाणं सुक्कलेसाणं अलेसाण य कयरे २.....? गोयमा! सव्वत्थोवा सुक्कलेस्सा पम्हलेस्सा संखेजगुणा तेउलेस्सा संखेजगुणा अलेस्सा अणंतगुणा काउलेस्सा अणंतगुणा णीललेस्सा विसेसाहिया कण्हलेस्सा विसेसाहिया। सेत्तं सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता॥२६६॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422