Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 366
________________ सर्व जीवाभिगम - द्विविध वक्तव्यता ३४९ किसी का मरण संभव है। उत्कृष्ट अंतर अंतर्मुहूर्त है क्योंकि दूसरी बार उपशम श्रेणी प्रतिपन्न का वेदोपशमन होने पर श्रेणी का अन्तर्मुहूर्त काल समाप्त होने पर पुनः सवेदकत्व संभव है। सादि अपर्यवसित अवेदक का अन्तर नहीं है क्योंकि क्षीण वेद वाला जीव पुनः सवेदक नहीं होता। सादि सपर्यवसित अवेदक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त है क्योंकि उपशम श्रेणी समाप्ति पर सवेदक होने पर पुनः अंतर्मुहूर्त में दूसरी बार उपशम श्रेणी पर चढ़ कर अवेदकत्व की स्थिति हो सकती है। उत्कृष्ट अंतर अनंतकाल का है। यह अनंत काल, अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी रूप है और क्षेत्र से अपार्द्ध पुद्गल परावर्त है क्योंकि एक बार उपशम श्रेणी प्राप्त कर वहाँ अवेदक होकर श्रेणी समाप्ति पर पुनः सवेदक होने की स्थिति में इतने काल के अनन्तर पुनः श्रेणी को प्राप्त कर अवेदक हो सकता है। अल्पबहुत्व - अवेदक थोड़े हैं उनसे सवेदक अनंतगुणा हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव अनन्त हैं। सकषायी और अकषायी जीवों का कथन भी सवेदक और अवेदक की तरह कर देना चाहिये। अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-सलेसा य अलेसा य जहा असिद्धा सिद्धा, सव्वत्थोवा अलेसा सलेसा अणंतगुणा॥२४५॥ भावार्थ - अथवा सर्व जीव दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - सलेशी और अलेशी। जिस प्रकार असिद्धों और सिद्धों का कथन किया है उसी प्रकार इनका भी कथन कर देना चाहिये। सबसे थोड़े अलेशी हैं उनसे सलेशी अनंतगुणा हैं। ___ अहवा० णाणी चेव अण्णाणी चेव॥ णाणी णं भंते! णाणित्ति कालओ०? गोयमा! णाणी दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-साइए वा अपज्जवसिए साइए वा संपज्जवसिए, तत्थ णं जे से साइए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाई साइरेगाइं अण्णाणी जहा सवेयगा। भावार्थ - अथवा सब जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - ज्ञानी और अज्ञानी प्रश्न - हे भगवन् ! ज्ञानी, ज्ञानीरूप में कितने काल तक रह सकता है? उत्तर - हे गौतम! ज्ञानी दो प्रकार के कहे गये हैं - सादि अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित। इनमें जो सादि सपर्यवसित हैं वे जघन्य से अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकते हैं। अज्ञानी का कथन सवेदक की तरह समझना चाहिये। विवेचन - ज्ञानी अर्थात् सम्यग्ज्ञानी दो प्रकार के कहे गये हैं - १. सादि अपर्यवसित और २ सादि अपर्यवसित। केवली सादि अपर्यवसित हैं क्योंकि केवलज्ञानी सादि अनन्त हैं। मतिज्ञानी आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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