Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 384
________________ सर्व जीवाभिगम-सर्व जीव त्रिविध वक्तव्यता ३६७ भावार्थ - अथवा सर्वजीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक और नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक। भवसिद्धिक जीव अनादि सपर्यवसित हैं। अभवसिद्धिक अनादि अपर्यवसित हैं और नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक सादि-अपर्यवसित हैं। तीनों का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े अभवसिद्धिक हैं, उनसे नोभवसिद्धिक-नोअभव सिद्धिक अनंतगुणा हैं और उनसे भी भवसिद्धिक जीव अणंतगुणा हैं। विवेचन - अपेक्षा से सर्व जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा - भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक और नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक। भवसिद्धिक अनादि सपर्यवसित, अभवसिद्धिक अनादि अपर्यवसित और नोभवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक सादि अपर्यवसित होने से इनकी कायस्थिति और अंतर घटित नहीं होता। ___ अल्पबहुत्व द्वार में - सबसे थोड़े अभवसिद्धिक हैं क्योंकि वे जघन्य युक्तानन्तक के तुल्य हैं, उनसे नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक अनन्तगुणा हैं क्योंकि अभव्यों से सिद्ध अनंतगुणा हैं उनसे भी भवसिद्धिक अनंतगुणा हैं. क्योंकि सिद्धों से भी भव्य अनन्तगुणा हैं। - अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णता, तंजहा-तसा थावरा णोतसाणोथावरा, तसस्स णं भंते कालओ!०? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई साइरेगाई, थावरस्स संचिट्ठणा वणस्सइकालो, णोतसाणोथावरा साइया अपज्जवसिया। तसस्स अंतरं वणस्सइकालो, थावरस्स अंतरं दो सागरोवमसहस्साइं साइरेगाई, णोतसणो-थावरस्स णत्थि अंतरं। अप्पाबहु० सव्वत्थोवा तसा णोतसाणोथावरा अणंतगुणा थावरा अणंतगुणा। से तं तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता॥२५६॥ भावार्थ - अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. त्रस २. स्थावर और ३. नोत्रस-नोस्थावर।। : प्रश्न - हे भगवन्! त्रस, त्रस रूप में कितने काल तक रहता है? उत्तर - हे गौतम! त्रस त्रस, रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक दो हजार सागरोपम तक रह सकता है। स्थावर का संचिट्ठणा काल वनस्पतिकाल है। नोत्रस-नोस्थावर सादि अपर्यवसित हैं। अस का अन्तर वनस्पतिकाल है। स्थावर का अन्तर साधिक दो हजार सागरोपम का है। नोत्रसनोस्थावर का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व में - सबसे थोड़े त्रस हैं, उनसे नोत्रस-नोस्थावर अनंतगुणा हैं, उनसे स्थावर अनंतगुणा हैं। इस प्रकार सर्व जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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