Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 391
________________ ३७४ जीवाजीवाभिगम सूत्र ..........rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr............. अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े अवधिदर्शनी हैं क्योंकि वह देव, नारक और कुछ गर्भज तिर्यंचों व मनुष्यों को होता है, उससे चक्षुदर्शनी असंख्यातगुणा हैं क्योंकि चउरिन्द्रियों और असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रियों को भी होता है, उनसे केवलदर्शनी अनंतगुणा हैं क्योंकि सिद्ध अनंत हैं उनसे अचक्षुदर्शनी अनंतगुणा हैं क्योंकि एकेन्द्रियों को भी अचक्षुदर्शन होता है। अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-संजया असंजया संजयासंजया णोसंजयाणोअसंजयाणोसंजयासंजया। संजए णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्को० देसूणा पुव्वकोडी, असंजया जहा अण्णाणी, संजयासंजए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी, णोसंजयणो असंजय णोसंजयासंजए साइए अपज्जवसिए, संजयस्स संजयासंजयस्स दोण्हवि अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अवड पोग्गलपरियट्टू देसूणं, असंजयस्स आइदुवे णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी, चउत्थगस्स णत्थि अंतरं॥ अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा संजया संजयासंजया असंखेज्जगुणा णो संजयणोअसंजयणोसंजयासंजया अणंतगुणा, असंजया अणंतगुणा॥ सेत्तं चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता॥२६०॥ ॥तच्चा सव्वजीवच० पडिवत्ती समत्ता॥ भावार्थ - अथवा सर्व जीव चार प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. संयत २. असंयत ३. संयतासंयत और ४. नोसंयत-नोअसंयत-नो संयतासंयत। प्रश्न - हे भगवन्! संयत, संयत रूप में कितने काल तक रह सकता है ? उत्तर - हे गौतम! संयत, संयत रूप में जघन्य, एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि तक · रहता है। असंयत के विषय में अज्ञानी की तरह समझना चाहिये। संयतासंयत, संयतासंयत रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रहता है। नोसंयत-नो असंयत-नोसंयतासंयत सादि अपर्यवसित है। संयत और संयतासंयत का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त है। असंयत के आदि के दो भेदों का अन्तर नहीं है, सादि सपर्यवसित का अंतर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि है। नोसंयत-नोअसंयत, नो संयतासंयत का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व में-सबसे थोड़े संयत हैं, उनसे संयतासंयत असंख्यातगुणा हैं, उनसे नोसंयत नो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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