Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 389
________________ ३७२ जीवाजीवाभिगम सूत्र है। उत्कृष्ट अनन्तकाल का अंतर है। अनंतकाल अर्थात् काल से अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी रूप तथा क्षेत्र से देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त है। इस काल के पश्चात् जिसने पहले श्रेणी की है वह पुनः श्रेणी आरंभ करता ही है। अल्पबहुत्व - सबसे थोड़ें पुरुषवेदक हैं क्योंकि देवगति, मनुष्यगति और तिर्यंचगति में वे थोड़े ही हैं, उनसे स्त्रीवेदक संख्यातगुणा हैं क्योंकि तिर्यंचगति में स्त्रियां पुरुषों से तिगुनी, मनुष्यगति में सत्ताईस गुणी और देवगति में बत्तीसगुणी हैं। उनसे अवेदक अनंतगुणा हैं क्योंकि सिद्ध अनंत हैं। उनसे नपुंसकवेद अनंतगुणा हैं क्योंकि सिद्धों से वनस्पतिजीव अनंतगुणा हैं। अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी केवलदसणी॥ चक्खुदंसणी णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसहस्स साइरेगं, अचक्खुदंसणी दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-अणाइए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपजवसिए। ओहिदंसणिस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो छावट्ठी सागरोवमाणं साइरेगाओ, केवलदसणी साइए अपज्जवसिए॥ चक्खुदंसणिस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अचक्खुदंसणिस्स दुविहस्स णथि अंतरं। ओहिदंसणिस्सं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। केवलदंसणिस्स णत्थि अंतरं। अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा ओहिदसणी चक्खुदंसणी असंखेजगुणा केवलदसणी अणंतगुणा अचक्खुदंसणी अणंतगुणा॥ २५९॥ भावार्थ - अथवा सर्वजीव चार प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी। प्रश्न - हे भगवन्! चक्षुदर्शनी, चक्षुदर्शनी रूप में कितने काल तक रह सकता है ? उत्तर - हे गौतम! चक्षुदर्शनी, चक्षुदर्शनी रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है। अचक्षुदर्शनी दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित। अवधिदर्शनी, अवधिदर्शनी रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट साधिक दो छियासठ सागरोपम तक रह सकता है केवलदर्शनी सादि अपर्यवसित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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