Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 385
________________ ३६८ जीवाजीवाभिगम सूत्र विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में त्रस, स्थावर और नोत्रस-नोस्थावर के भेद से सर्व जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। इन तीन प्रकार के सर्व जीवों की कायस्थिति, अंतर और अल्पबहुत्व का कथन किया गया है। इस प्रकार सर्व जीवों की यह त्रिविध प्रतिपत्ति समाप्त हुई है। सर्व जीव चतुर्विध वक्तव्यता तत्थ णं जे ते एवमाहंस चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहामणजोगी वइजोगी कायजोगी अजोगी। मणजोगी णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, एवं वइजोगीवि, कायजोगी जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, अजोगी साइए अपजवसिए। मणजोगिस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं वइजोगिस्सवि, कायजोगिस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, अजोगिस्स णत्थि अंतरं। अप्पाबहु० सव्वत्थोवा मणजोगी वइजोगी असंखेजगुणा अजोगी अणंतगुणा कायजोगी अणंतगुणा ॥२५७॥ भावार्थ - जो ऐसा प्रतिपादित करते हैं कि सर्व जीव चार प्रकार के हैं, वे चार प्रकार इस प्रकार हैं - मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी। हे भगवन्! मनोयोगी, मनोयोगी रूप में कितने काल तक रहता है ? हे गौतम! मनोयोगी मनोयोगी रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त तक रहता है। वचन योगी के विषय में भी इसी प्रकार समझना। काययोगी जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। अयोगी सादि अपर्यवसित है। मनोयोगी का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। वचनयोगी का भी अंतर इतना ही है। काययोगी का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त का है। अयोगी का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व में - सबसे थोड़े मनोयोगी, उनसे वचनयोगी असंख्यातगुणा, उनसे अयोगी अनन्तगुणा और उनसे काययोगी अनंतगुणा हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी के भेद से सर्व जीवों के चार प्रकार कहे गये हैं और उनकी कायस्थिति (संचिट्ठणा), अंतर तथा अल्पबहुत्व का कथन किया गया है जो इस प्रकार समझना चाहिये - कायस्थिति - मनोयोगी जघन्य एक समय तक मनोयोगी के रूप में रह सकता है उसके बाद दूसरे समय में मरण हो जाने से या मनन से रहित हो जाने के कारण तथा विशिष्ट मनोयोग्य पुद्गल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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