Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सर्व जीवाभिगम - सर्व जीव त्रिविध वक्तव्यता
अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा- परित्ता अपरित्ता णोपरित्ताणोअपरित्ता । परित्ते णं भंते!० कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! परित्ते दुविहे पण्णत्ते, तंजहाकायपरित्ते य संसारपरित्ते य । कायपरित्ते णं भंते! ० ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेजं कालं जाव असंखेज्जालोगा। संसारपरित्ते णं भंते! संसारपरित्तेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्डुं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । अपरित्ते णं भंते! ० ? गोयमा ! अपरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तंजहा - कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य कायअपरित्ते णं० जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अड्डाइज्जा पोग्गल परियट्टा, संसारापरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तंजहा - अणाइए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए, णोपरित्तेणोअपरित्ते साइए अपज्जवसिए। कायपरित्तस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं जाव अड्डाइज्जा पोग्गल परियट्टा, संसार परित्तस्स णत्थि अंतरं, कायापरित्तस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेजं कालं पुढविकालो। संसारापरित्तस्स अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, णोपरित्तणोअपरित्तस्सवि थि अंतरं । अप्पाबहु० सव्वत्थोवा परित्ता णोपरित्ताणोअपरित्ता अनंतगुणा अपरित्ता अनंतगुणा ॥ २५१ ॥
भावार्थ अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं- परित्त, अपरित्त और नोपरिनो अपरित ।
प्रश्न - हे भगवन् ! परित्त, परित्त के रूप में कितने काल तक रहता हैं ?
उत्तर - हे गौतम! परित्त दो प्रकार के कहे हैं- कायपरित्त और संसारपरित्त ।
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प्रश्न - हे भगवन् ! कायपरित्त, कायपरित रूप में कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल यावत् असंख्यात लोक ।
प्रश्न - हे भगवन् ! संसारपरित्त, संसारपरित्त रूप में कितने काल तक रहता है ?
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उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनंतकाल यावत् देशोन अपार्द्धपुद्गल परावर्तन तक संसार परित्त संसार परित्त रूप में रहता है।
प्रश्न - हे भगवन्! अपरित्त, अपरित्त रूप में कितने काल तक रहता है ?
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