Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 359
________________ ३४२ जीवाजीवाभिगम सूत्र •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ३. तृतीय अल्पबहुत्व - प्रथम समय और अप्रथम समय वालों का शामिल अल्प बहुत्व - सबसे थोड़े प्रथम समय एकेन्द्रिय हैं क्योंकि बेइन्द्रिय आदि से आकर एक समय में थोड़े ही उत्पन्न होते हैं उनसे अप्रथम समय एकेन्द्रिय अनन्तगुणा हैं क्योंकि वनस्पतिकाल अनन्त हैं। बेइन्द्रियों में सबसे थोड़े प्रथम समय बेइन्द्रिय हैं उनसे अप्रथम समय बेइन्द्रिय असंख्यातगुणा हैं क्योंकि बेइन्द्रिय सब संख्या से भी असंख्यात ही हैं। इसी प्रकार तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों में भी प्रथम समय वाले कम हैं और अप्रथम समय वाले असंख्यातगुणा हैं। एएसि णं भंते! पढमसमय-एगिंदियाणं अपढमसमयएगिंदियाणं जाव अपढमसमयपंचिंदियाणं य कयरे २...? गोयमा! सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया पढमसमयचउरिंदिया विसेसाहिया पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया एवं हेट्ठामुहा जाव पढमसमयएगिंदिया विसेसाहिया अपढमसमयपंचेंदिया असंखेज्जगुणा अपढमसमयचउरिदिया विसेसाहिया जाव अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा॥२४३॥ सेत्तं दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, सेत्तं संसारसमावण्णगजीवाभिगमे॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन प्रथम समय एकेन्द्रिय, अप्रथम समय एकेन्द्रिय यावत् अप्रथम समय पंचेन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े प्रथम समय पंचेन्द्रिय, उनसे प्रथम समय चउरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथम समय तेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथम समय बेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथम समय एकेन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथम समय पंचेन्द्रिय असंख्यातगुणा, उनसे अप्रथम समय चउरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथम समय तेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथम समय बेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथम समय एकेन्द्रिय अनन्तगुणा हैं। इस प्रकार दसविध संसार समापनक जीवों का वर्णन पूर्ण हुआ। इस प्रकार संसार समापन्नक जीवाभिगम का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में दस प्रकार के संसारी जीवों की अपेक्षा चौथा अल्पबहुत्व कहा गया है। जिसका स्पष्टीकरण पूर्वानुसार समझ लेना चाहिए। इस प्रकार दसविधाख्या नौवीं प्रतिपत्ति पूर्ण हुई। दस प्रकार के संसार समापनक जीवों का कथन करने के साथ ही संसार समापन्नक जीवाभिगम समाप्त हुआ। ॥णवमा दसविहा पडिवत्ती समत्ता॥ ॥ दशविधाख्या नामक नवमी प्रतिपत्ति समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422