Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
भावार्थ - अथवा सर्व जीव दो प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - सइन्द्रिय (सेइन्द्रिय) और अनिन्द्रिय। .
प्रश्न - हे भगवन् ! सेन्द्रिय, सेन्द्रिय के रूप में कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित। अनिन्द्रिय में सादि अपर्यवसित। दोनों में अन्तर नहीं है। सबसे थोड़े अनिन्द्रिय और उनसे सेन्द्रिय अनंतगुणा हैं।
अथवा सर्व जीव दो प्रकार के कहे गये हैं - १. सकायिक और २. अकायिक। इसी तरह सयोगी और अयोगी, सलेशी और अलेशी, सशरीरी और अशरीरी। इनकी कायस्थिति (संचिट्ठणा) अन्तर और अल्पबहुत्व सेन्द्रिय की तरह समझना चाहिये।
विवेचन - पूर्व सूत्र में सर्वजीव के सिद्ध और असिद्ध, ये दो भेद करने के बाद सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में सेन्द्रिय-अनिन्द्रिय, सकायिक-अकायिक, सयोगी-ओगी, सलेशी अलेशी, सशरीरी अशरीरी रूप दो-दो भेद किये हैं। सेन्द्रिय, सकायिक, सयोगी, सलेशी और सशरीरी की कायस्थिति. और अन्तर असिद्ध के अनुसार तथा अनिन्द्रिय अकायिक, अयोगी, अलेशी और अशरीरी की कायस्थिति और अन्तर सिद्ध के अनुसार कह देने चाहिये। अल्पबहुत्व में अनिन्द्रिय थोड़े और सेन्द्रिय अनंतगुणा हैं क्योंकि सेन्द्रिय वनस्पति जीव अनन्त हैं। इसी तरह सकायिक अकायिक आदि का भी अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिये।
अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-सवेयगा चेव अवेयगा चेव॥ सवेयए णं भंते! सवे०? . __गोयमा! सवेयए तिविहे पण्णत्ते, तंजहा-अणाइए वा अपजवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, साइए सपजवसिए, तत्थ णं जे से साइए सपजवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव खेत्तओ अवडं पोग्गलपरियट्टू देसूणं॥
अवेयए णं भंते! अवेयएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? .
गोयमा! अवेयए दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-साइए वा अपजवसिए साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ णं जे से साइए सपजवसिए से जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं॥
भावार्थ - प्रश्न - अथवा सर्व जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - सवेदक और अवेदक।
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