Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 346
________________ सत्तमा अट्ठविहपडिवत्ती अष्टविधाख्या सप्तम प्रतिपत्ति छठी प्रतिपत्ति में सात प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का कथन करने के बाद सूत्रकार इस सातवीं प्रतिपत्ति में आठ प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का कथन करते हैं, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है - तत्थ णं जे ते एवमाहंसु - अट्ठविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा- पढमसमयणेरड्या अपढमसमयणेरड्या पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणुस्सा अपढमसमयमणुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा ॥ भावार्थ - जो ऐसा कहते हैं कि संसार समापन्नक जीव आठ प्रकार के हैं उनके अनुसार ये आठ भेद इस प्रकार हैं १. प्रथम समय नैरयिक २. अप्रथम समय नैरयिक ३. प्रथम समय तिर्यंचयोनिक ४. अप्रथम समय तिर्यंचयोनिक ५. प्रथम समय मनुष्य ६. अप्रथम समय मनुष्य ७. प्रथम समय देव और ८. अप्रथम समय देव । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में आठ प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का कथन किया गया है। नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव, इन चार के प्रथम समय और अप्रथम समय इस प्रकार दो-दो भेद किये गये हैं । इस प्रकार संसारी जीवों के ४x२=८ आठ भेद हुए । जो अपने जन्म के प्रथम समय में वर्तमान हैं ऐसे नैरयिक आदि, प्रथम समय नैरयिक आदि कहलाते हैं । प्रथम समय को छोड़ कर शेष सब समयों में वर्तमान जीव अप्रथम समय नैरयिक आदि कहलाते हैं । - - Jain Education International पढमसमयणेरइयस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! पढमसमय - णेरइयस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एक्कं समयं, अपढमसमयणेरइयस्स जहण्णेणं दसवाससहस्साइं समऊणाई उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं समऊणाई । पढमसमय-तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एक्कं समयं, अपढमसमय-तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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