Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 337
________________ ३२० जीवाजीवाभिगम सूत्र उत्तर - हे गौतम! सूक्ष्म निगोद द्रव्य की अपेक्षा संख्यात नहीं, असंख्यात हैं, अनंत नहीं। इसी तरह पर्याप्तक और अपर्याप्तक के विषय में भी कह देना चाहिए। इसी प्रकार. बादर निगोद के विषय में भी समझना चाहिये। पर्याप्तक और अपर्याप्तक के विषय में इसी तरह कह देना चाहिये वे संख्यात नहीं, असंख्यात हैं, अनंत नहीं है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में निगोद की संख्या विषयक वर्णन है। द्रव्य की अपेक्षा से निगोद संख्यात नहीं हैं क्योंकि अंगुल के असंख्यातवें भाग अवगाहना वाले निगोद सारे लोक में व्याप्त है। वे असंख्यात हैं क्योंकि असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। वे अनंत नहीं हैं क्योंकि केवल ज्ञानियों ने उन्हें अनन्त नहीं जाना है। इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्त निगोद के विषय में समझ लेना चाहिये। __णिओयजीवा णं भंते! दव्वट्ठयाए किं संखेजा असंखेजा अणंता? गोयमा! णो संखेजा णो असंखेजा अणंता, एवं पजत्तगावि अपज्जत्तगावि एवं सुहमणिओयजीवावि पज्जत्तगावि अपजत्तगावि, बायरणिओयजीवावि पजत्तगावि अपज्जत्तगावि॥.. णिओया णं भंते! पएसट्टयाए किं संखेज्जा० पुच्छा, गोयमा! णो संखेजा णो असंखेजा अणंता, एवं पजत्तगावि अपजत्तगावि। एवं सुहमणिओयावि पजत्तगावि अपजत्तगावि, पएसट्ठयाए सव्वे अणंता, एवं बायरणिओयावि पजत्तयावि अप्पजत्तयावि, पएसट्ठयाए सव्वे अणंता, एवं णिओयजीवाणवविहावि पएसट्ठयाए सव्वे अणंता॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! निगोद जीव द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं? उत्तर - हे गौतम! निगोद जीव द्रव्य की अपेक्षा संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, अनंत हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक के विषय में भी समझना चाहिये। इसी प्रकार सूक्ष्म निगोद जीवों, इनके पर्याप्तकों अपर्याप्तकों, बादर निगोद जीवों, इनके अपर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के विषय में भी कह देना चाहिए। प्रश्न - हे भगवन्! प्रदेश की अपेक्षा निगोद असंख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उत्तर - हे गौतम! प्रदेश की अपेक्षा निगोद संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं किन्तु अनन्त हैं। इसी प्रकार पर्याप्तक और अपर्याप्तक के विषय में भी कहना चाहिये। इसी प्रकार सूक्ष्म निगोद और उनके पर्याप्तक तथा अपर्याप्तक के विषय में भी समझना चाहिए। ये सब प्रदेश की अपेक्षा अनन्त हैं। इसी प्रकार बादर निगोद के और उनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक के विषय में भी समझ लेना चाहिए। ये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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