Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छट्ठी सत्तविहा पडिवत्ती सप्तविधाख्या षष्ठ प्रतिपत्ति
पांचवीं प्रतिपति में छह प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का वर्णन करने के पश्चात् सूत्रकार इस छठी प्रतिपति में सात प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का वर्णन करते हैं, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है
तत्थ णं जे ते एवमाहंसु - सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा प० ते एवमाहंसु, तंजा - णेरड्या तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ मणुस्सा मणुस्सीओ देवा देवीओ ॥
भावार्थ - जो आचार्य ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसार समापन्नक जीव सात प्रकार के हैं, वे सात प्रकार इस प्रकार हैं- नैरयिक, तिर्यंच योनिक, तिर्यंच स्त्री, मनुष्य, मनुष्यिणी (मनुष्य स्त्री), देव और देवी ।
विवेचन - इस छठी प्रतिपत्ति में संसारी जीवों के सात भेद इस प्रकार बताये हैं २. तिर्यंच ३. तिर्यंच स्त्री ४. मनुष्य ५. मनुष्य स्त्री ६. देव और ७. देवी ।
इयस्स ठिई जहण्णेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, तिरिक्खजोणियस्स ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई, एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मणुस्साणवि मणुस्सीणवि, देवाणं ठिई जहा णेरइयाणं, देवीगं० जहणेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं पणपण्णपलिओवमाई ॥
भावार्थ - नैरयिक की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। तिर्यंच योनिक की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। इसी प्रकार तिर्यंच स्त्री, मनुष्य और मनुष्य स्त्री की भी स्थिति समझनी चाहिये । देवों की स्थिति नैरयिक की स्थिति के समान है। देवियों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की है।
मनुष्य.
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में सातों जीवों की स्थिति का प्रतिपादन है जो इस प्रकार है- नैरयिकों और देवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है । तिर्यंच, तिर्यंच स्त्री, और मनुष्य स्त्री की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। देवियों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की (दूसरे ईशान देवलोक की अपरिगृहीता देवियों की अपेक्षा) कही गयी है।
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१. नैरयिक
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