Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३१८
जीवाजीवाभिगम सूत्र +++000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000. उनसे बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर अप्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर वायुकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्तक संख्यातगुणा, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे सूक्ष्म निगोद पर्याप्तक संख्यातगुणा, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक अनंतगुणा उनसे सामान्य बादर पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे सामान्य बादर अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे सामान्य बादर विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणा, उनसे सामान्य सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक उनसे सामान्य सूक्ष्म विशेषाधिक हैं।
विवेचन - प्रस्तुत पांचवें अल्पबहुत्व में शभी षट्कायिक पर्याप्तकों अपर्याप्तकों का शामिल अल्पबहुत्व कहा गया है।
निगोद वर्णन । कइविहा णं भंते! णिओया पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा णिओया पण्णत्ता, तंजहा-णिओया य णिओयजीवा य॥ णिओया णं भंते! कइविहा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-सुहमणिओया य बायरणिओया य॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! निगोद दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - निगोद और निगोद जीव। प्रश्न - हे भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के कहे गये हैं? उत्तर-हे गौतम! निगोद दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - सूक्ष्म निगोद और बादर निगोद।
विवेचन - निगोद का अर्थ है-अनंतजीवों का पिण्ड (आश्रय स्थान)। यहाँ निगोद के दो भेद कहे गये हैं-निगोद और निगोद जीव। निगोद और निगोद जीव की व्याख्यात करते हुए टीकाकार कहते हैं -
'तत्र निगोदा जीवाश्रय विशेषा, निगोद जीवा विभिन्न तेजसकार्मणा जीवा एव।'
अर्थात् - अनंत जीवों का आधार भूत शरीर निगोद है और निगोद जीव एक ही औदारिक शरीर में रहे हुए भिन्न-भिन्न तैजस कार्मण शरीर वाले अनंत जीवात्मक है। सूक्ष्म और बादर के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org