Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 334
________________ ' पंचम प्रतिपत्ति - सूक्ष्म बादरों का शामिल अल्पबहुत्व ३१७ बादर निगोद के विषय में समझ लेना चाहिये। विशेषता है कि प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक सबसे थोड़े अपर्याप्तक असंख्यातगुणा। इसी प्रकार बादर त्रसकायिकों के विषय में भी समझ लेना चाहिये। विवेचन - प्रस्तुत चौथे अल्पबहुत्व में छहकाय जीवों के प्रत्येक के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों का अल्पबहुत्व कहा गया है। सूक्ष्म जीवों में अपर्याप्तक जीव थोड़े और पर्याप्तक संख्यातगुणा हैं और बादरों में पर्याप्तक थोड़े और अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं। सव्वेसिं भंते! पज्जत्तअपजत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया पजत्ता बायरतसकाइया पजत्तगा असंखेजगुणा ते चेव अपजत्तगा असंखेजगुणा पत्तेयसरीरबायर-वणस्सइअपज्जत्तगा असंखे० बायरणिओया पज्जत्ता असंखे० बायरपुढवि० पजत्ता असं० आउवाउपज्जत्ता असंखे० बायरतेउकाइयअपज्जत्ता असंखे० पत्तेय० अपज्जत्ता असंखे० बायरणिओयअपज्जत्ता असं० बायरपुढवि० आउवाउकाइ० अपज्जत्तगा असंखेजगुणा सुहमतेउकाइया अपजत्तगा असं० सुहमपुढविआऊवाउअपज्जत्ता विसेसा० सुहुमतेउकाइयपज्जत्तगा संखेजगुणा सुहुमपुढविआउवाउपज्जत्तगा विसेसाहिया सुहुमणिओया अपजत्तगा असंखेजगुणा सुहमणिओया पज्जत्तगा संखेजगुणा बायरवणस्सइकाइया पजत्तगा अणंतगुणा बायरा पज्जत्तगा विसेसाहिया बायरवणस्सइ० अपज्जत्ता असंखे० बायरा अपजत्ता. विसे० बायरा विसेसाहिया सुहुमवणस्सइकाइया अपजत्तगा असंखेजगुणा सुहमा अपज्जत्ता विसेसाहिया सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्ता संखेजगुणा सुहमा पज्जत्तगा विसेसाहिया सुहमा विसेसाहिया॥२३७॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सभी पर्याप्तकों एवं अपर्याप्तकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? .. .उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्तक, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर त्रसकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर निगोद पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर वायुकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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