Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पंचमा छव्विहा पडिवत्ती
षड् विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति चौथी प्रतिपत्ति में पांच प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का वर्णन करने के बाद अब सूत्रंकार क्रम प्राप्त पांचवीं प्रतिपत्ति में छह प्रकार के संसार समापनक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-पुढविकाइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सइक्काइया तसकाइया॥
से किं तं पुढविकाइया? .
पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-सुहुमपुढविकाइया बायरपुढविकाइया, सुहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगा य अपजत्तगा य, एवं बायरपुढविकाइयावि, एवं चउक्कएणं भेएणं आउतेउवाउवणस्सइकाइया णेयव्वा। से किं तं तसकाइया? तसकाइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तगा य अपज्जत्तगा य॥२२६॥
भावार्थ - जो छह प्रकार के संसार समापनक जीवों का प्रतिपादन करते हैं उनका कथन इस प्रकार हैं - १. पृथ्वीकायिक २. अपकायिक ३. तेजस्कायिक ४. वायुकायिक ५. वनस्पतिकायिक और ६. त्रसकायिक।
प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और २. बादर पृथ्वीकायिक। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार बादर पृथ्वीकायिक जीवों के भी दो भेद हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक के चार-चार भेद कह देने चाहिये। ..
प्रश्न - हे भगवन् ! त्रसकायिक के कितने भेद कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! त्रसकायिक दो प्रकार के हैं। यथा - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। विवेचन - जो आचार्य छह प्रकार के संसारी जीवों का प्रतिपादन करते हैं वे छह भेद इस प्रकार
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