Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पंचम प्रतिपत्ति
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अल्पबहुत्व
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सूक्ष्म, सूक्ष्म रूप में कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! सूक्ष्म की काय स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल की है । यह असंख्यातकाल असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी रूप है तथा असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों के अपहार काल के समान है इसी तरह सूक्ष्म पृथ्वीकाय यावत् सूक्ष्म निगोद की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पृथ्वीकाल (असंख्यात काल) है । सभी पर्याप्तक सूक्ष्मों और अपर्याप्तक सूक्ष्मों की जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति अंतर्मुहूर्त्त प्रमाण ही है ।
सुहुमस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ?
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गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं कालओ असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागो, एवं सुहुमवणस्सइकाइयस्सवि सुहुमणिओयस्सवि जाव असंखेज्जा लोया असंखेज्जइभागो । पुढविकाइयाईणं वणस्सइकालो। एवं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणवि ॥ २३२ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सूक्ष्म का अंतर कितने काल का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! सूक्ष्म का अंतर काल जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल है। यह असंख्यातकाल असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी रूप है तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग क्षेत्र में जितने आकाश प्रदेश हैं उन्हें प्रतिसमय एक एक कर निकालने में जितना समय लगता है उतना असंख्यातकाल समझना चाहिये। सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्म निगोदं का अंतर असंख्यात काल - पृथ्वीकाल है। सूक्ष्म पृथ्वीकाय यावत् सूक्ष्म वायुकायिक का अंतर उत्कृष्ट वनस्पतिकाल अनंतकाल है 1 अपर्याप्तक सूक्ष्मों और पर्याप्तक सूक्ष्मों का अंतर सामान्य औधिक सूत्र के अनुसार समझना चाहिये ।
अल्पबहुत्व
एवं अप्पाबहुयं, सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया सुहुमाउवाऊ विसेसाहिया सुहुमणिओया असंखेज्जगुणा सुहुमवणस्सइकाइया अनंतगुणा सुहुमा विसेसाहिया, एवं अपज्जत्तगाणं, पज्जत्तगाणवि एवं चेव ॥
एएसि णं भंते! सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे० ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्तगा सुहुमा पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, एवं जाव सुहुमणिओया ॥
भावार्थ - अल्पबहुत्व इस प्रकार है - सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक
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