Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र ..............................rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror वनस्पतिकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर निगोद पर्याप्तक असंख्यातंगुणा उनसे पृथ्वीकाय अप्काय-वायुकाय पर्याप्तक क्रमश: असंख्यातगुणा, उनसे बादर तेजस्काय अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पति अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर पृथ्वीकाय-अप्काय-वायुकाय अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर वनस्पति पर्याप्तक अनंतगणा. उनसे बादर पर्याप्तक विशेषाधिक. उनसे बादर वनस्पति अपर्याप्तक असंख्यगणा उनसे बादर अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे बादर पर्याप्तक विशेषाधिक हैं।
विवेचन - इस पांचवें अल्पबहुत्व में बादर छह कायों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों का शामिल अल्प बहुत्व कहा गया है। जो इस प्रकार है - सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्तक, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा,उनसे बादर त्रसकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर निगोद पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे बादर वायुकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा (स्पष्टीकरण पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये) उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं क्योंकि बादर वायुकायिक पर्याप्तक असंख्यात लोकाकाश प्रदेश के आकाश प्रदेशों के बराबर हैं किन्तु बादर तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। यह असंख्यात पूर्व के असंख्यात से असंख्यातगुणा समझना चाहिये। बादर तेजस्कायिक अपर्याप्तक से प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक, बादर निगोद अपर्याप्तक, बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक, बादर अप्कायिक अपर्याप्तक, बादर वायुकायिक अपर्याप्तक क्रमशः असंख्यातगुणा हैं बादर वायुकायिक अपर्याप्तक से बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक अनंतगुणा हैं क्योंकि एक-एक बादर निगोद में अनंत जीव हैं। बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक से सामान्य बादर पर्याप्तक विशेषाधिक हैं क्योंकि बादर तेजस्कायिक आदि पर्याप्तक भी उनमें शामिल हैं। उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं क्योंकि एक-एक पर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिक निगोद की नेश्राय में असंख्यात अपर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिक निगोद उत्पन्न होते हैं। उनसे सामान्य बादर अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं क्योंकि उनमें बादर तेजस्कायिक आदि अपर्याप्तकों का भी समावेश है। उनसे सामान्य बादर विशेषाधिक हैं क्योंकि इसमें सभी का समावेश हो जाता है। इस प्रकार बादर के पांच अल्पबहुत्व कहे गये हैं।
सूक्ष्म बादरों का शामिल अल्पबहुत्व एएसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं जाव सुहुमणिओयाणं बायराणं बायरपुढविकाइयाणं जाव बायरतसकाइयाण य कयरे कयरेहिंतो०?
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