Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति - अरुणद्वीप, अरुणोदक समुद्र वर्णन
२२७ 0000000000000000000000000000000romoooooooooooooooooooooooooose
उन सिद्धायतनों में बहुत से भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देव, चातुर्मासिक प्रतिपदा आदि पर्व दिनों में, सांवत्सरिक उत्सव के दिनों में तथा अन्य बहुत से जिनेश्वर देवों के जन्म, दीक्षा, ज्ञानोत्पत्ति और निर्वाण कल्याणकों के अवसर पर देवकार्यों में, देवमेलों में, देवगोष्ठियों में, देव सम्मेलनों में और देवों के जीत व्यवहार संबंधी प्रयोजनों के लिये एकत्रित होते हैं, सम्मिलित होते हैं आनंद विभोर हो कर महामहिमाशाली अष्टाह्निका पर्व मनाते हुए सुखपूर्वक विचरते हैं।
वहाँ कैलाश और हरिवाहन नाम के दो महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं। इस कारण हे गौतम! उसका नाम नंदीश्वरद्वीप कहा गया है। यह शाश्वत और नित्य है। यहां सभी " ज्योतिषी (चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण) संख्यात संख्यात कहे हैं।
णंदीसरवरण्णं दीवं गंदीसरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव सव्वं तहेव अट्ठो जो खोदोदगस्स जाव सुमणसोमणसभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति सेसं तहेव जाव तारग्गं॥१८४॥
भावार्थ - नंदीश्वरद्वीप को गोल और वलयाकार संस्थान से संस्थित नंदीश्वर समुद्र चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है। इत्यादि सारा वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि वहां सुमनस और सौमनसभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष सारा वर्णन यावत् तारागण की संख्या तक पूर्ववत् कह देना चाहिये।
__ अरुणद्वीप, अरुणोदक समुद्र वर्णन ... णंदीसरोदं णं समुहं अरुणे णामं दीवे वट्टे वलयागार जाव संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ। अरुणे णं भंते! दीवे किं समचक्कवालसंठिए विसमचक्कवालसंठिए? गोयमा! समचक्कवालसंठिए णो विसमचक्कवालसंठिए, केवइयं चक्कवालवि०? गोयमा! संखेजाइं जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं संखेजाइं जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते, पउमवर० वणसंडदारा दारंतरा य तहेव संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइंदारंतरं जाव अट्ठो, वावीओ० खोदोदगपडिहत्थाओ उप्यायपव्वयगा सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा, असोगवीयसोगा य एत्थ दुवे देवा महिड्डिया जाव परिवसंति, से तेण जाव संखेजं सव्वं॥
भावार्थ - नंदीश्वर समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए अरुण नामक द्वीप है जो गोल है और वलयाकार संस्थान से संस्थित है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org