Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - वैमानिक देवों की शरीरावगाहना
२७७
विवेचन - इस प्रकार देवलोकों में देवों का अपहार कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा नहीं, केवल संख्या बताने के लिए ही यह कल्पना मात्र है।
वैमानिक देवों की शरीरावगाहना सोहम्मीसाणेसुणं भंते! कप्पेसु देवाणं केमहालया सरीरोगाहणा पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा सरीरा पण्णत्ता, तंजहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य, तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागो उक्कोसेणं सत्त रयणीओ, तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए से जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागो उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, एवं एक्केक्का ओसारेत्ताणं जाव अणुत्तराणं एक्का रयणी, गेविजणुत्तराणं एगे भवधारणिज्जे सरीरे उत्तरवेउब्बिया णत्थि॥२१३॥ ____ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में देवों के शरीर की कितनी अवगाहना कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! देवों के शरीर दो प्रकार के होते हैं। यथा - भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें से जो भवधारणीय शरीर वाले हैं उनकी अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट सात हाथ है। उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन की है। इस प्रकार आगे-आगे के कल्पों में एक-एक हाथ कम करते रहना चाहिए यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों के शरीर की अवगाहना एक हाथ की होती है। ग्रैवेयकों और अनुत्तर विमानवासी देवों के एक भवधारणीय शरीर ही होता है वे देव उत्तरविक्रिया नहीं करते हैं। .
विवेचन - देवों के भवधारणीय शरीर की अवगाहना इस प्रकार होती है। देवलोक के नाम
जघन्य अवगाहना
उत्कृष्ट अवगाहना १-२: सौधर्म ईशान
ज० अंगुल का असंख्यातवां भाग उ० सात हाथ ३-४. सनत्कुमार माहेन्द्र
उ० छह हाथ ५-६. ब्रह्मलोक लान्तक
उ० पांच हाथ ७-८. महाशुक्र-सहस्रार
उ० चार हाथ ९-१२. आनत प्राणत आरण अच्युत
उ० तीन हाथ नवग्रैवेयक
उ० दो हाथ अनुत्तरविमान
- उ० एक हाथ
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