Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
७. महाशुक्र देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य चौदह सागरोपम और उत्कृष्ट सतरह सागरोपम ८. सहस्रार देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य सतरह सागरोपम और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम। ९. आनत देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम १०. प्राणत देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य उन्नीस सागरोपम और उत्कृष्ट बीस सागरोपम ११. आरण देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य बीस सागरोपम और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम १२. अच्युत देवलोक में देवों की स्थिति जघन्य इक्कीस सागरोपम और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम प्रथम ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २२ सागरोपम उत्कृष्ट २३ सागरोपम। . . द्वितीय ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २३ सागरोपम उत्कृष्ट २४ सागरोपम। . तृतीय ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २४ सागरोपम उत्कृष्ट २५ सागरोपम। " चतुर्थ ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २५ सागरोपम उत्कृष्ट २६ सागरोपम। पांचवें ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २६ सागरोपम उत्कृष्ट २७ सागरोपम। । छठे ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २७ सागरोपम उत्कृष्ट २८ सागरोपम।। सातवें ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २८ सागरोपम उत्कृष्ट २९ सागरोपम। आठवें ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २९ सागरोपम उत्कृष्ट ३० सागरोपम। नववें ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य ३० सागरोपम उत्कृष्ट ३१ सागरोपम।
चार अनुत्तर विमान (विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित) के देवों की स्थिति जघन्य ३१ सागरोपम और उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की होती है। सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तर विमान के देवों की स्थिति अजघन्य अनत्कष्ट तेतीस सागरोपम की होती है।
उद्वर्तना - देवगति से चव कर देवों का दूसरी गति में उत्पन्न होना उद्वर्तना कहलाता है।
सौधर्म और ईशान देवलोक के देव बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में, संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। सनत्कुमार से लेकर सहस्रारकल्प तक के देव संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त गर्भज तिर्यंच और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं, ये एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते। आनत कल्प के देवों से लगाकर अनुत्तर विमान तक के देव तिर्यंच पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न नहीं होते, केवल संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं।
सोहम्मीसाणेसुणं भंते! कप्पेसु सव्वपाणा सव्वभूया जाव सत्ता पुढविकाइयत्ताए (जाव वणस्सइकाइयत्ताए) देवत्ताए देवित्ताए आसणसयण जाव भंडोवगरणत्ताए
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