Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२९२
जीवाजीवाभिगम सूत्र .......000000000000000000000000ramerserrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन नैरयिकों यावत् देवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य हैं, उनसे नैरयिक असंख्यातगुण हैं, उनसे देव असंख्यातगुण हैं और उनसे तिर्यंच अनन्तगुण हैं । इस प्रकार चार प्रकार के संसार समापनक जीवों का वर्णन समाप्त हुआ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चार गति के जीवों का अल्प बहुत्व कहा गया है जो इस प्रकार समझना चाहिये-सबसे थोड़े मनुष्य हैं क्योंकि वे श्रेणी के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेशों की राशि प्रमाण हैं। उनसे नैरयिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि वे अंगुल मात्रं क्षेत्र की प्रदेश राशि के प्रथम वर्ग मूल को द्वितीय वर्ग मूल से गुणा करने पर जितनी प्रदेश राशि होती है उतने प्रमाण वाली श्रेणियों के जितने आकाश प्रदेश होते हैं उतने प्रमाण में नैरयिक हैं। उनसे देव असंख्यातगुणा हैं क्योंकि ९८ बोल में वाणव्यंतर देव और ज्योतिषी देव, नैरयिकों से असंख्यातगुणा कहे गये हैं। देवों से तिर्यंच अनंतगुणा हैं क्योंकि वनस्पतिकाय के जीव अनन्त कहे गये हैं। इस प्रकार चार तरह के संसारी जीवों की तीसरी प्रतिपत्ति पूर्ण हुई। ।
॥दूसरा वैमानिक देव उद्देशक समाप्त॥ ॥ चतुर्विधाख्या नामक तृतीय प्रतिपत्ति समाप्त॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org