Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति- वैमानिक देवों में उत्पाद
वीइवएज्जा जाव अणुत्तरोववाइयविमाणा अत्थेगइयं विमाणं वीइवएज्जा अत्थेगइए०
वीवजा ॥
भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प में विमान कितने बड़े हैं ?
-
उत्तर - हे गौतम! कोई देव जो चुटकी बजाते ही इस एक लाख योजन के लम्बे-चौड़े और तीन लाख योजन से अधिक की परिधि वाले जंबूद्वीप की इक्कीस (२१) बार प्रदक्षिणा कर आवे ऐसी शीघ्र आदि विशेषणों वाली गति से निरन्तर छह मास तक चलता रहे तब वह कितनेक विमानों के पास पहुँच सकता है, उन्हें लांघ सकता है और कितनेक विमानों को नहीं लांघ सकता है, इतने बड़े वे विमान कहे गये हैं । इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिक विमान तक समझना चाहिए कि कितनेक विमानों को लांघ सकता है और कितनेक विमानों को नहीं लांघ सकता है।
सोहम्मीसाणेसु णं भंते! ० विमाणा किंमया पण्णत्ता ?
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गोयमा! सव्वरयणामया पण्णत्ता, तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमंति चयंति उवचयंति, सासया णं ते विमाणा दव्वट्टयाए जाव फासपज्जवेहिं असासया जाव अणुत्तरोववाइया विमाणा ॥
भावार्थ- - प्रश्न हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प के विमान किसके बने हुए हैं ?
उत्तर- हे गौतम! सौधर्म और ईशान कल्प के विमान सर्व रत्न मय हैं। उनमें बहुत से जीव और पुद्गल पैदा होते हैं चवते हैं इकट्ठे होते हैं और वृद्धि को प्राप्त होते हैं । वे विमान द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा शाश्वत हैं और पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत है। इसी प्रकार का कथन अनुत्तरौपपातिक विमानों तक करना चाहिये ।
वैमानिक देवों में उत्पाद
सोहम्मीसाणेसु णं० देवा कओहिंतो उववज्जंति ? उववाओ णेयव्वो जहा वक्कंतीए तिरियमणुएसु पंचेंदिएसु संमुच्छिमवज्जिएसु, उववाओ वक्कंतीगमेणं जाव अणुत्तरो० ॥ भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में देव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूच्छिम जीवों को छोड़ कर शेष पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों में से आकर जीव सौधर्म और ईशान में देव रूप से उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रांति पद के अनुसार यावत् अनुत्तरौपपातिक विमानों तक यहाँ कह देना चाहिये।
विवेचन - सहस्रार देवलोक से आगे केवल मनुष्यों से ही आकर उत्पन्न होते हैं। अतः उत्कृष्ट संख्याता जीवों का ही उपपात बताया है।
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