Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
विमानों की प्रभा सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा केरिसया पभाए पण्णत्ता?
गोयमा! णिच्चालोया णिच्चुजोया सयं पभाए पण्णत्ता जाव अणुत्तरोववाइयविमाणा णिच्चालोया णिच्चुज्जोया सयं पभाए पण्णत्ता॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प में विमानों की प्रभा कैसी है?
उत्तर - हे गौतम! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान नित्य स्वयं की प्रभा से प्रकाशमान और नित्य उद्योत वाले हैं यावत् अनुत्तरौपपातिक विमान भी स्वयं की प्रभा से नित्य आलोक और नित्य उद्योत वाले कहे गये हैं।
विमानों की गंध सोहम्मीसाणेसुणं भंते! कप्पेसु विमाणा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता?
गोयमा! से जहा णामए-कोट्ठपुडाण वा एवं जाव एत्तो इट्टतरागा चेव जाव गंधेणं पण्णत्ता, जाव अणुत्तरविमाणा॥ ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प में विमानों की गंध कैसी है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोष्ट पुडादि सुगंधित पदार्थों की गंध होती है उसमें भी इष्टतर गंध सौधर्म ईशान कल्प के विमानों की है। अनुत्तर विमान तक इसी प्रकार समझना चाहिये।
विमानों का स्पर्श सोहम्मीसाणेसु० विमाणा केरिसया फासेणं पण्णत्ता?
गोयमा! से जहा णामए-आइणेइ वा रूएइ वा सव्वो फासो भाणियव्वो जाव अणुत्तरोववाइयविमाणा॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सौधर्म ईशान कल्प में विमानों का स्पर्श कैसा कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे आजीनचर्म, रूई आदि का मृदु स्पर्श होता है वैसा स्पर्श उन विमानों का है यावत् अनुत्तरौपपातिक विमान तक इसी प्रकार कह देना चाहिए।
विमानों का स्वरूप सोहम्मीसाणेसुणं भंते! कप्पेसु विमाणा केमहालया पण्णत्ता?
गोयमा! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सो चेव गमो जाव छम्मासे वीइवएज्जा जाव अत्थेगइया विमाणावासा वीइवएजा अत्थेगइया विमाणावासा णो
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