Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - अरुणद्वीप, अरुणोदक गमुद्र वर्णन
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हारदीवे हारभद्दहारमहाभद्दा एत्थ०। हारसमुद्दे हारवरहारवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया०।हारवरोदे दीव हारवरभद्दहारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया०। हारवरोदे समुद्दे हारवरहारवरमहावरा एत्थ०। हारवरावभासे दीवे हारवरावभासभद्दहारवरावभासमहाभद्दा एत्थ०। हारवरावभासोदे समुद्दे हारवरावभासवरहारवराव भास महावरा एत्थ०। एवं सव्वेवि तिपडोयारा णेयव्वा जाव सूरवरोभासोदे समुद्दे, दीवेसु भद्दणामा वरणामा होति उदहीसु, जाव पच्छिमभावं खोयवराईसु सयंभूरमणपजंतेसु वावीओ० खोदोदगपडिहत्थाओ पव्वयगा य सव्ववइरामया०।
भावार्थ - हारद्वीप में हारभद्र और हारमहाभद्र नाम के दो देव हैं। हार समुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरद्वीप में हारवरभद्र और हारवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरोद समुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरावभासद्वीप में हारवरावभासभद्र और हारवरावभास महाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरावभासोद समुद्र में हारवरावभासवर और हारवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं।
इसी तरह से समस्त द्वीप और समुद्र त्रिप्रत्यवतार वाले समझना चाहिये यावत् सूर्यवरावभास समुद्र तक कह देना चाहिये। द्वीपों के नाम के साथ भद्र और महाभद्र तथा समुद्र के नामों के साथ वर
और महावर शब्द लगाने से उन उन द्वीपों और समुद्रों के देवों के नाम बन जाते हैं। क्षोदवरद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण तक के द्वीप और समुद्रों में वापिकाएं यावत् बिलपंक्तियां हैं और ये सब क्षोदोदकइक्षुरस जैसे जल से भरी हुई हैं और जितने भी पर्वत हैं वे सब सर्वात्मना वज्रमय हैं।
विवेचन - यहां पर मूल पाठ में सयंभूरमणपज्जंतेसु-स्वयंभूरमण पर्यन्त' शब्द दिया है। उसका आशय- 'स्वयंभूरमण द्वीप समुद्र के पूर्व तक के द्वीप समुद्र तक' समझना चाहिये। स्वयंभूरमण द्वीप में आई हुई बावड़ियों आदि का पानी तथा स्वयंभूरमण समुद्र का पानी तो स्वाभाविक उदक रस जैसा बताया है। ___अरुणद्वीप से लगा कर सूर्य द्वीप तक त्रिप्रत्यवतार (अरुण, अरुणवर, अरुणवराभास, इस तरह तीन तीन) समझना चाहिये। इससे आगे नहीं। द्वीपों के नामों के साथ भद्र और महाभद्र तथा समद्रों के नामों के साथ वर और महावर लगाने से उन उन द्वीपों के देवों के नाम बन जाते हैं। जैसे सूर्य द्वीप के दो देव सूर्यभद्र और सूर्य महाभद्र तथा सूर्य समुद्र के दो देव सूर्यवर और सूर्यमहावर है। इसी तरह आगे के द्वीपों और समुद्रों के विषय में समझ लेना चाहिये।
देवदीवे दीवे देवभद्ददेवमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया०, देवोदे समुद्दे देववरदेवमहावरा एत्थ० जाव सयंभूरमणे दीवे सयंभूरमणभद्दसयंभूरमणमहाभद्दा एत्थ
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