Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - चन्द्र सूर्य वर्णन
२४६
उत्तर - हे गौतम! जैसे जैसे उन तारा रूप देवों के पूर्व भव में किये हुए तप, नियम, ब्रह्मचर्य आदि में उत्कृष्टता या अनुत्कृष्टता (हीनता) होती है उसी अनुपात में उनमें अणुत्व या तुल्यत्व होता है इसलिये हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि चन्द्र सूर्यों के नीचे समश्रेणी में या ऊपर जो तारा रूप देव हैं वे हीन भी हैं और बराबर भी हैं।
- एगमेगस्स णं भंते! चंदिमसूरियस्स केवइओ णक्खत्तपरिवारो पण्णत्तो केवइओ महग्गहपरिवारो पण्णत्तो केवइओ तारागणकोडाकोडीओ परिवारो प०? गोयमा! एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स
अट्ठासीइंच गहा अट्ठावीसं च होइ णक्खत्ता। एगससीपरिवारो एत्तो ताराण वोच्छामि॥१॥ छावट्ठिसहस्साइं णवचेव सयाइं पंचसयराइं। एगससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं॥२॥१९४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक चन्द्र और सूर्य के कितने नक्षत्र, कितने महाग्रह और कितने कोटाकोटि तारागणों का परिवार कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! प्रत्येक चन्द्र सूर्य के परिवार में अत्यासी (८८) ग्रह, अट्ठाईस (२८) नक्षत्र होते हैं और ताराओं की संख्या छियासठ हजार नौ सौ पिचहत्तर (६६९७५) कोडाकोडी होती हैं।
जंबूद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ केवइयं अबाहाए जोइसं चारं चरइ?
गोयमा! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ, एवं दक्खिणिल्लाओ पच्चथिमिल्लाओ उत्तरिल्लाओ एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयण० जाव चारं चरइ॥
लोगंताओ भंते! केवइयं अबाहाए जोइसे पण्णत्ते? गोयमा! एक्कारसहिं एक्कारेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसे पण्णत्ते॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जंबूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिषी देव कितनी दूर रह कर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! जंबूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व चरमान्त से ग्यारह सौ इक्कीस (११२१) योजन दूरी से ज्योतिषी देव प्रदक्षिणा करते हैं। इसी तरह दक्षिण चरमांत, पश्चिम चरमांत और उत्तर चरमांत से भी ग्यारह सौ इक्कीस-ग्यारह सौ इक्कीस (११२१-११२१) योजन दूरी से ज्योतिषी देव मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते हैं।
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