Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
भावार्थ - आणत प्राणत देवलोक विषयक पृच्छा। प्राणत देव की तीन परिषदाएं हैं। आभ्यंतर परिषद् में अढ़ाई सौ (२५०) देव हैं। मध्यम परिषद् में पांच सौ (५००) देव हैं और बाह्य परिषद् में एक हजार (१०००) देव हैं। आभ्यंतर परिषद् के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और पांच पल्योपम है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और चार पल्योपम है, बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और तीन पल्योपम की है। परिषदाओं का अर्थ पूर्वानुसार समझ लेना चाहिए।
कहि णं भंते! आरणअच्चुयाणं देवाणं तहेव अच्चुए सपरिवारे जाव विहरइ, अच्चुयस्स णं देविंदस्स तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, अब्भिंतरपरि० देवाणं पणवीसं सयं मज्झिम० अड्डाइज्जा सया बाहिरिय० पंचसया, अब्भिंतरियाए एक्कवीसं सागरोवमा सत्त य पलिओवमाई मज्झि एक्कवीससागरो० छप्पलि० बाहिरि० एगवीसं सागरो० पंच य पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
भावार्थ - हे भगवन् ! आरण अच्युत देवों के विमान कहां हैं इत्यादि कथन करना चाहिए यावत् अच्युत नामक देवेन्द्र देवराज सपरिवार रहता है। देवेन्द्र देवराज अच्युत की तीन परिषदाएं हैं। आभ्यंतर परिषद् में एक सौ पच्चीस (१२५) देव है, मध्यम परिषद् में दो सौ पचास (२५०) देव हैं और बाह्य परिषद् में पांच सौ (५००) देव हैं। आभ्यंतर परिषद् के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और सात पल्योपम की, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और छह पल्योपम की और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और पांच पल्योपम की कही गई है।
विवेचन - तीनों परिषदाओं वाली देवियाँ अपरिगृहीता होने की संभावना है। अपरिगृहीता का अर्थ स्वयं के विमान आदि पर स्वतंत्र हुकुमत वाली देवियाँ। जैसे इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया थी।
कहि णं भंते! हेट्ठिमगेवेजगाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! हेडिमगेवेजगा देवा परिवसंति?, जहेव ठाणपए तहेव, एवं मज्झिमगेवेज्जा उवरिमगेविजगा अणुत्तरा य जाव अहमिंदा णामं ते देवा पण्णत्ता समणाउसो!॥२०८॥
॥ पढमो वेमाणिय उद्देसो समत्तो॥ . भावार्थ - हे भगवन् ! अधस्तन ग्रैवेयक देवों के विमान कहाँ कहे गये हैं, अधस्तन ग्रैवेयक देव कहां रहते हैं ?
___ जैसा स्थानपद में कहा है वैसा ही यहा समझ लेना चाहिए। इसी तरह मध्यम ग्रैवेयक, उपरितन ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानवासी देवों का कथन कर देना चाहिए यावत् हे आयुष्मन श्रमण! ये सब अहमिन्द्र हैं-वहाँ छोटे बड़े का कोई भेद नहीं है।
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